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6 जुलाई, 2024
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Darbhanga में जो है नाम वाला वही तो बदनाम है…झूठ बेनकाब! जीवन की रक्त पर ‘अलीगढ़ का ताला’

खबरों की विरासत का निष्पक्ष निर्भीक समर्पित @7 साल : 20 जुलाई, 2018 - 20 जुलाई, 2025 ... DeshajTimes.Com यह संस्कार है। इसमें हवा की ताकत है। सूरज सी गर्मी। चांद सी खूबसूरती तो चांदनी सी शीतलता भी। यह आग भी है। धधकता शोला भी। तपिश से किसी को झुलसा देने की हिम्मत भी। झुककर उसकी उपलब्धि पर इतराने की दिलकश अदा भी।

दरभंगा का DMCH। यह नाम पटना के बाद सबसे बड़ा है। हेल्थ सिस्टम की यहां जोरदार तरफदारी हो रही। एम्स खुल रहा। सुपर स्पेशलिटी का दावा किया जा रहा है। मगर, सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के वसूलों से यही हाल है। डीएमसीएच का झूठ बेनकाब हो चुका है! जिसे चालू बताया जा रहा था वह तो ताला बंद मिला। फिर हश्र यह हुआ कि भागम-भाग मुजफ्फरपुर की ओर हुई क्योंकि डीएमसीएच एफेरेसिस मशीन तो कमरे में तालाबंद मिला। नतीजा, दरभंगा में रक्त संग्रहण मशीन का दावा झूठा निकला। डॉक्टर को मुजफ्फरपुर भेजने की स्थिति बनी रही। मगर स्वास्थ्य प्रशासन मानेगा, एफरेसिस मशीन को लेकर डीएमसीएच में बड़ी चूक की जिम्मेदारी लेगा? मरीजों को नहीं मिल रही जरूरी सुविधा से वंचित रहने की कीमत देगा? तय है, दरभंगा अस्पताल में एफरेसिस मशीन की शुरुआत का दावा फेल हो चुका है। डीएमसीएच में मशीन के नाम पर छलावा स्पष्ट है।मशीन का प्रचार झूठा साबित हो रहा है। और, डीएमसीएच के डॉक्टरों को मुजफ्फरपुर भेजने की नौबत आ रही है। शर्मनाक... स्वास्थ्य मंत्री का आदेश बेअसर हो रहा है। "फर्जी दावे की पोल खुल गई है! DMCH में चालू नहीं हुई एफेरेसिस मशीन। मरीजों को हो रही परेशानी। ऊपर से "स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही! डीएमसीएच में सालों से धूल फांक रही करोड़ों की मशीन को लेकर कोई-किसी को परवाह नहीं। दरभंगा DMCH में मरीजों की जान से खिलवाड़? चालू बताई गई मशीन मिली ताला बंद। पढ़िए पूरी रिपोर्ट..

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दरभंगा, देशज टाइम्स.कॉम ब्यूरो रिपोर्ट: अलीगढ़ के ताले मज़बूती और वैरायटी के लिए मशहूर हैं। अलीगढ़ में तालों के बनने का इतिहास करीब 130 साल पुराना है। अलीगढ़ के ताले दुनिया के कई देशों में जाने जाते हैं। तो अपना डीएमसीएच भी क्या कम है। मगर, अलीगढ़ के ताले से कुछ सीख शायद ही डीएमसीएच प्रशासन ले। उसके जैसा टिकाऊ और भरोसे पर उतरना सबक है।

मनाया शताब्दी साल, हो रहे शर्मसार…’गर्व में सना शर्म’

अभी-अभी दरभंगा मेडिकल कॉलेज (DMC) का शताब्दी समारोह साल 2025 में मनाया गया। समारोह में ‘स्पर्धा 2025’ नाम से कई प्रतियोगिताएं हुईं। वैसे भी, डीएमसीएच पटना पीएमसीएच के बाद सबसे बड़ा बिहार का अस्पताल है। इसपर गर्व है। लेकिन शर्म के साथ…जहां, झूठे दावे, जमीनी शक्ल में सामने है।

यहां झूठ बोले जाते हैं… प्रमाण है यह Machine

अलीगढ़ के ताले इतने मजबूत हैं, टिकाउ हैं आप इसपर भरोसा कर सकते हैं। लेकिन, डीएमसीएच की व्यवस्था पर भरोसा करना, इलाज कराकर सकुशल घर लौट जाना, बेहद रिस्की है। वजह है, यहां झूठ बोले जाते हैं। इसका प्रमाण है, डीएमसीएच (Darbhanga Medical College & Hospital) का क्षेत्रीय रक्त अधिकोष विभाग। इस विभाग की  एफेरेसिस मशीन (Apheresis Machine) चालू करने का दावा झूठा निकला।

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SDP की पड़ी जरूरत, तो करना पड़ा यह भागम-भाग

मशीन उपलब्ध होने के बावजूद मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। हाल ही में डीएमसीएच के एक चिकित्सक को सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (SDP) की जरूरत थी, लेकिन मशीन चालू नहीं होने के कारण उन्हें मुजफ्फरपुर रेफर किया गया।

बंद कमरे में लटके ताले ने खोली पोल

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बल्ड बैंक के जिस कमरे में एफेरेसिस मशीन रखी गई है, उस पर ताला लटका हुआ है, जिससे साफ जाहिर होता है कि मशीन का अब तक कोई उपयोग नहीं हुआ है।

तस्वीर दिखाया, लेकिन हकीकत कुछ और ही निकली

पिछले 27 फरवरी को प्रेस रिलीज के जरिए डीएमसीएच प्रशासन ने यह दावा किया था कि एफेरेसिस मशीन चालू कर दी गई है। इसके लिए अधीक्षक और समिति के सदस्यों की तस्वीरें भी जारी की गई थीं। लेकिन हकीकत कुछ और ही निकली।

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स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश के बाद भी मशीन धूल फांक रही

✔️ कोविड महामारी के दौरान 2021 में एफेरेसिस मशीन खरीदी गई थी
✔️ स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने डीएमसीएच प्रशासन को इसे चालू करने का आदेश दिया था
✔️ लेकिन अब तक मरीजों को इस सुविधा का लाभ नहीं मिल सका

क्या है एफेरेसिस मशीन और क्यों जरूरी है?

एफेरेसिस मशीन रक्त को अलग-अलग घटकों में विभाजित करती है और जरूरत के अनुसार प्लेटलेट्स, प्लाज्मा, सफेद या लाल रक्त कोशिकाओं को अलग कर मरीज को दिया जाता है।
🔹 इसका उपयोग विशेष रूप से डेंगू, ब्लड कैंसर, एनीमिया और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
🔹 डोनर एफेरेसिस प्रक्रिया के जरिए एक ही डोनर से ज्यादा मात्रा में प्लेटलेट्स प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कई गंभीर मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकता है।

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डीएमसीएच प्रशासन का क्या कहना है?

क्षेत्रीय रक्त अधिकोष विभाग के एचओडी डॉ. संजीव कुमार ठाकुर का कहना है कि मशीन पूरी तरह तैयार है, लेकिन अभी तक जरूरतमंद मरीज नहीं पहुंचे हैं, इसलिए इसका उपयोग नहीं किया गया।

प्रशासन की लापरवाही या तकनीकी अड़चन?

👉 अगर मशीन पूरी तरह कार्यरत है, तो डीएमसीएच के चिकित्सक को मुजफ्फरपुर क्यों रेफर किया गया?
👉 क्या डीएमसीएच प्रशासन ने मीडिया को गुमराह करने के लिए गलत जानकारी दी?
👉 क्या मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने की बजाय सिर्फ कागजी घोषणाएं की जा रही हैं?

DeshajTimes.com पर इस मामले से जुड़ी अपडेट्स के लिए जुड़े रहें।

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