दरभंगा, देशज टाइम्स अपराध ब्यूरो प्रमुख। डीजीपी और एडीजी मुख्यालय के निर्देश को दरभंगा के एसएसपी और आईजी ठेंगा बताते रहें हैं। इसी का नतीजा था कि पूर्व से चर्चित और दागी थानेदार मनमौजी तरीके से थाना चलाते रहे। और, सभी वरीय पुलिस अधिकारी मूकदर्शक बने रहे।
लेकिन, गौर से समझा जाय तो इन सबों पर तत्कालीन सिटी एसपी अशोक कुमार भारी पड़ गये थे। उस वक्त वर्तमान एसएसपी अवकाश कुमार यहां नहीं थे। एसएसपी अवकाश कुमार के छुट्टी पर चले जाने के बाद प्रभार में एसएसपी पद पर कई महीनों तक अशोक कुमार जमे रहे।
इस कार्यकाल में जो उन्होंने किया वह तो इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया। पुलिस के किसी मैनुअल में ना इसे पढ़े थे। ना, कभी सोचा जा सकता था।
सिटी एसपी एवं प्रभार में रहे तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार ने 72 पुलिस कर्मियों को इधर से उधर कर दिया। इसमें 11 थानाध्यक्ष/ओपी अध्यक्ष शामिल थे। इन्होंने दागी पुलिस कर्मियों को थानेदार बनाया। समझा जा सकता है कि और भी पुलिस पदाधिकारी जिला में तैनात नहीं थे क्या? उनमें से किसी काे थानाध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता था क्या?
लेकिन बहादुरपुर और विशनपुर के थानाध्यक्ष पद पर वैसे लोगों को बिठा दिया जो दागदार थे। इनके सर्विस बुक में आइने की तरह सब कुछ झलक रहा था। बावजूद इनकी पोस्टिंग की गई। इससे एक बात बखूबी आप समझ सकते हैं कि यह अवैध उगाही का हिस्सा तो नहीं था?
एक तो प्रभार में रहते श्री अशोक प्रसाद को ऐसा करना नहीं था। लेकिन, उन्होंने ऐसा किया। डीजीपी तक इस मामले की जानकारी थी, बावजूद उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हां, सरकार ने उन्हें प्रोन्नति जरूर दे दी। उन्हें रेल एसपी के पद पर सुशोभित कर दिया। इस मामले को लेकर उस वक्त आईजी ललन प्रसाद से जब हमने पूछा था तो उन्होंने कहा कि इस मामले में उनकी ओर से कोई अनुमोदन नहीं किया गया है।
अब सवाल उठता है कि प्रभार में रहते सिटी एसपी अशोक प्रसाद ने कैसे 72 पुलिस पदाधिकारियों का तबादला किया। अगर सिटी एसपी प्रभार में रहते 72 पुलिसकर्मियों का तबादला किए तो आईजी ललन प्रसाद क्यों मूकदर्शक थे। क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं थी?
अगर उनकी जिम्मेदारी थी तो सिटी एसपी अशोक प्रसाद पर कार्रवाई के लिये सरकार को पत्र क्यों नहीं भेजा। यही नहीं कुछ दिनों बाद हुई समीक्षात्मक बैठक के बाद डीजीपी ने कई पुलिस पदाधिकारियों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
बावजूद इसके, क्या कारण था कि जिले में दस साल से ऊपर कई वर्षों तक जमे पुलिस पदाधिकारियों का स्थानांतरण क्यों नहीं किया गया? डीजीपी के कई बार निर्देशित करने के बाद कैसे बहादुरपुर और विशनपुर थानाध्यक्ष यहां जमे रहें? ऐसे कई तमाम प्रश्न यहां ऐसे दिखाई पड़ती हैं जो पूर्णिया कांड से कम नहीं है।
एसएसपी और आईजी ऐसे गंभीर मामलों में पक्ष देने सामने नहीं आते। इस कारण वर्षों से जमे पुलिसकर्मी यहां पुलिस कम गुंडा ज्यादा नजर आते हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार भी यही चाहती है। यही कारण है कि डीजीपी पर कई आरोप लगने के बाद सरकार ने कुछ अलग उत्तर देते हुए डीजीपी पर कार्रवाई नहीं कर अपना पल्ला झाड़ दिया।
आप बहादुरपुर और विशनपुर के आम नागरिक से थानाध्यक्ष के बारे में पूछेंगे तो एक ही जवाब मिलेगा कि ऐसे पुलिस पदाधिकारी बिहार के लिये कोढ़ हैं। इनकी बर्खास्तगी होनी चाहिये। लोग यहां तक कहते है कि ऐसे पुलिस अधिकारी के कारण ही बिहार बदनाम है।
सूत्रों की माने तो कहा जाता है कि पुलिसिया व्यवस्था तो लेन देन पर टीका हुआ है। कुछ जिलों को छोड़कर यह पूरे राज्य में एक मजबूत सिस्टम बना हुआ है। सिटी एसपी अशोक कुमार ने जो गलतियां की थी उसे ना ही एसएसपी अवकाश कुमार सुधार पाएं और ना ही आईजी ललन प्रसाद ने ही सुधारा। इसे आप क्या कहेंगे…?