आंचल कुमारी। राम के उद्धार से अहल्या श्राप से हुईं मुक्त…अब जीर्ण काया को कौन देगा आकार? निकली राम की बरात@Grand Welcome जहां, कमतौल आज राममय हो गया। अहल्यास्थान में राम बरात का भव्य स्वागत देखने उमड़ी भक्तों की भीड़ ने महोत्सव को खिला दिया।
मिथिला की धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पड़े चरण
मिथिला की धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की बरात के आगमन से भक्तिमय माहौल छा गया। सीतामढ़ी से दरभंगा जिले में प्रवेश करते ही मिथिला नगरी जय श्रीराम और जय जय सियाराम के नारों से गूंज उठी। अहल्यास्थान में भगवान श्रीराम का स्वागत श्रद्धालुओं ने पलक पांवड़े बिछाकर किया।
अहल्यास्थान में स्वागत की भव्यता
- मंगल गीतों की धुन:
- “अवध नगरिया से अइले सुंदर दूल्हा…”
- “देखु देखु सखिया सजनी हमार हे…” जैसे गीतों ने वातावरण को भक्तिरस से भर दिया।
- भगवान श्रीराम का परिछन और आरती:
- रथ से भगवान को कंधे पर उठाकर मंगल आरती की गई।
- भक्तों ने फूलों की वर्षा कर भगवान का स्वागत किया।
युवराज कुमार कपिलेश्वर सिंह की उपस्थिति
युवराज कपिलेश्वर सिंह सपरिवार अहल्यास्थान पहुंचे और रामजानकी मंदिर में दर्शन-पूजन किया।
- मंदिर जीर्णोद्धार पर चर्चा:
- स्थानीय निवासियों ने 1817 में निर्मित रामजानकी मंदिर के जीर्णोद्धार और विकास के लिए ध्यान आकृष्ट कराया।
- युवराज ने आश्वासन दिया कि मंदिर के जीर्णोद्धार और विकास के लिए प्रयास किया जाएगा।
प्रमुख आयोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम
- दूल्हा बने श्रीराम सहित चारों भाइयों का स्वागत:
- मंच पर युवराज ने श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का पाग, चादर, माला से सम्मान किया।
- “आजु मिथिला नगरिया निहाल सखिया…” जैसे गीतों ने समारोह को रंगीन बना दिया।
- अतिथि सम्मान:
- अयोध्या से आए साधु-संतों को भी मिथिला की परंपरा अनुसार सम्मानित किया गया।
राम बरात की रवानगी
- जनकपुर के लिए प्रस्थान:
- देर शाम श्रीराम की बरात अहल्यास्थान से विदा होकर जनकपुर धाम के लिए रवाना हुई।
- साधु-संत और प्रतीकात्मक रूप से श्रीराम के चारों भाइयों को भी सम्मानपूर्वक विदाई दी गई।
मिथिला में उत्साह का माहौल
अहल्यास्थान में इस आयोजन ने मिथिला की अतिथि देवो भव: परंपरा को एक नई पहचान दी। श्रद्धालु और बराती, दोनों ही इस आयोजन से अभिभूत होकर प्रभु श्रीराम की महिमा का गुणगान करते दिखे।
श्रीराम रथ के गुजरने वाले रास्ते चंदौना
श्रीराम रथ के गुजरने वाले रास्ते चंदौना, घोघराहा, जाले, लतराहा, राढ़ी, ब्रह्मपुर पश्चिमी, रतनपुर, ब्रह्मपुर पूर्वी, राढ़ी पूर्वी में श्रीराम की बरात देखने के लिए सड़कों के किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। जगह-जगह रथ पर पुष्प वर्षा कर अपने आराध्य का स्वागत करने के लिए सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु जगह जगह खड़े थे।
रतनपुर से अहल्यास्थान आने वाले रास्ते में
रतनपुर से अहल्यास्थान आने वाले रास्ते में रथ के प्रवेश करते ही जय जय सियाराम के जयकारे से माहौल भक्तिमय हो गया। इसके साथ ही भगवती अहल्या की नगरी अहल्यास्थान में उल्लास छा गया। बरात देखने के लिए अहल्यास्थान में कई गांव के लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। स्वागत के बनाये गए पंडाल में तिल रखने की जगह नहीं बची।
अहल्यास्थान के विकास पर की ध्यान आकृष्ट कराया
अयोध्या से जनकपुर जा रहे भगवान श्रीराम की बरात का स्वागत करने लिए रविवार को करीब डेढ़ बजे युवराज कुमार कपिलेश्वर सिंह सपरिवार अहल्यास्थान पहुंचे। मन्दिरों में दर्शन पूजन के बाद अतिथि गृह में बातचीत के दौरान स्थानीय लोगों ने 1817 ई. में महाराजा छत्र सिंह द्वारा बनवाए गए रामजानकी मन्दिर, तालाब आदि के जीर्णोद्धार और अहल्यास्थान के विकास पर की ध्यान आकृष्ट कराया।
यदि आप प्रयास करेंगे तो अहल्यास्थान का विकास और
कहा कि यहां हर वर्ष लाखों रुपए खर्च कर महोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान मंच से बार-बार मंदिर के जीर्णोद्धार की बात की जाती है। कहा तो यह भी गया है कि इसके जीणोद्धार के लिए 25 करोड़ का डीपीआर सरकार की ओर से तैयार है. परंतु हमलोगों को खोखले आश्वासन पर यकीन नहीं हो रहा है। यदि आप प्रयास करेंगे तो अहल्यास्थान का विकास और मन्दिर का जीर्णोद्धार अवश्य हो जाएगा।
जीर्णोद्धार का पूरा प्रयास किया जाएगा
लोगों को आश्वस्त करते हुए युवराज ने कहा कि पूरी जानकारी प्राप्त कर अहल्यास्थान के विकास और मन्दिर के जीर्णोद्धार का पूरा प्रयास किया जाएगा। इसको लेकर उन्होंने ग्रामीणों से एक आवेदन देने को भी कहा। स्थानीय न्यास समिति की ओर से मिथिला के रिवाज के अनुसार पाग, चादर, माला से सम्मानित किया गया और अहल्या संदेश नामक स्मारिका प्रदान किया गया। बरात आने में विलंब होने की सूचना के बाद सपरिवार गौतमाश्रम के लिए प्रस्थान किए। गौतमाश्रम में दर्शन पूजन कर वापस अहल्यास्थान पहुंचे। इसके बाद भगवान श्रीराम बरात के स्वागत सत्कार में जुट गए।
स्थानीय लोगों का योगदान
आयोजन को सफल बनाने में शैलेन्द्र ठाकुर, कामेश्वर मिश्र, रघुनंदन ठाकुर समेत अन्य स्थानीय लोगों का योगदान सराहनीय रहा।