दरभंगा | मिथिला संस्कृत शोध संस्थान के विकास के लिए डीएम राजीव रौशन ने 126 करोड़ रुपए का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है। इस प्रस्ताव से संस्थान में रखी गई दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
संस्थान के विकास में हुई तेज़ी
संस्थान के पूर्व पांडुलिपि विभागाध्यक्ष डॉ. मित्रनाथ झा ने जानकारी दी कि संस्थान के चतुर्दिक विकास की कवायद तेज हो चुकी है।
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा भी संस्थान के विकास की बात कही गई थी।
- राज्यसभा सांसद संजय झा की पहल को विकास की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
126 करोड़ का प्रस्ताव: ऐतिहासिक कदम
संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. देवनारायण यादव ने बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा संस्थान को एजेंडे में शामिल करना इसके पुनरुद्धार को सुनिश्चित करता है।
- संस्थापक महाराजाधिराज डॉ. कामेश्वर सिंह द्वारा संस्थान की स्थापना के समय दिए गए साढ़े तीन लाख रुपए के योगदान के बाद यह योजना अपने आप में ऐतिहासिक है।
- डिजिटलीकरण के माध्यम से संस्थान की दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाएगा।
शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया
- प्रो. जयशंकर झा: 126 करोड़ की योजना का मार्ग प्रशस्त होना एक दुर्लभ उपलब्धि है।
- डॉ. शिवकिशोर राय: डिजिटलीकरण से शोधार्थियों और भावी पीढ़ियों को पांडुलिपियों में निहित ज्ञान का व्यापक लाभ मिलेगा।
- डॉ. संतोष पासवान: सांसद संजय झा की व्यक्तिगत रुचि और प्रयासों से संस्थान का विकास संभव हो पाया है।
- डॉ. आरएन चौरसिया: संस्थान के स्वर्णिम अतीत के शीघ्र लौटने की संभावना बढ़ गई है।
रिक्त पदों और आधारभूत संरचना पर ध्यान
राज्य परामर्शदात्री सदस्य उज्ज्वल कुमार ने संस्थान में दशकों से खाली पड़े निदेशक और अन्य शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति की आवश्यकता पर जोर दिया।
- डीएम द्वारा भेजे गए विस्तृत प्रस्ताव में आधारभूत संरचनाओं के विकास का खाका तैयार है।
- यह योजना मिथिला के सांस्कृतिक और शैक्षणिक उत्थान का प्रतीक है।
निष्कर्ष
मिथिला संस्कृत शोध संस्थान के विकास के लिए 126 करोड़ की योजना का प्रस्ताव न केवल संस्थान के पुनरुद्धार की ओर एक बड़ा कदम है, बल्कि यह मिथिला की सांस्कृतिक और शैक्षणिक विरासत को संरक्षित करने का सुनहरा अवसर भी प्रदान करेगा। मुख्यमंत्री और सांसद संजय झा की पहल से यह ऐतिहासिक योजना संभव हो सकी है।