“कृष्ण“ एक संस्कृत शब्द/ काला/अंधेरा या गहरा नीला का समानार्थी/ एक संपूर्ण सनातन धर्म/ विष्णु के 8वें अवतार/
कन्हैया/ श्याम/ गोपाल/ केशव/ द्वारकेश/ द्वारकाधीश/ वासुदेव/सभी कृष्ण/ श्री हरि विष्णु/ सबसे सुंदर अवतार/ बांके बिहारी/युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष/ युगपुरुष/ युगावतार/अति-आकर्षक/ महाकाव्य महाभारत के युद्ध के दृश्यों का एक हिस्सा/महानायक/ रुक्मिणी/ सत्यभामा/ जामवंती/ कालिंदी/ मित्रवृंदा/ नाग्नजिती/भद्रा/ लक्ष्मणा के रूपक/ आठों पत्नियों/सभी भक्ति और आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक/प्रत्येक के लिए कृष्ण पूर्ण श्रद्धेय/सभी गोपियों का उल्लेख/देवकी और चंद्रवंशी क्षत्रिय वासुदेव के पूर्ण विकल्प/बलराम और सुभद्रा के चहेते/ कंस/ शिशु बालिका देवी दुर्गा की कथाएं/और फिर संपूर्ण ज्ञान का अथाह श्रीमद्भगवदगीता/
श्रीकृष्ण के जीवन कथाओं के कई संस्करण/ हरिवंश, भागवत पुराण/ विष्णु पुराण/ सांख्य योग/ कर्म योग/ भक्ति योग/ राजयोग/ एक ईश्वरावाद/जीवन, नैतिकता और नश्वरता की प्रकृति/ रहस्यमय शब्दों और स्तम्भों में आवरण करती धार्मिक और दार्शनिक विचारों की एक विस्तृत श्रृंखला/ दर्शन/ सांख्य/ तत्वमीमांसा/ भक्ति योग/ वेदांत शब्दावली का एक मिश्रण/ वेदांतिक विचार भिन्नता/ गैर-द्वैतवादीमानव जीवन/ दिव्य का प्रतिबिंब/ कृष्ण की लीला प्रेम/ आध्यात्म का परिपूर्ण धर्मशास्त्र/ संगीत/ नृत्य की उत्पत्तिस्थान/ त्रिभन्ग मुद्रा की बांसुरी/ गाय/बछड़ा/मक्खन चोर/ मित्र सुदामा/ राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम/निष्काम कर्मयोगी/ आदर्श दार्शनिक/ स्थितप्रज्ञ/ दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष सिर्फ एक जो कृष्ण हैं/
ईश्वर: सर्वभूतानाम् हृद्देश्य अर्जुन तिष्ठति| भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मयाया।
हे अर्जुन, शरीर रूपी यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को सर्वोत्तम परमात्मा अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण करवाता है। और, सभी प्राणियों के हृदय में रहता हैं।
तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत|
तत्प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्रपस्यसि शाश्वत्त्वम्|
हे भारत के वंशज, अर्जुन! तू सब प्रकार से उस परम ईश्वर की ही शरण में जा। उस परमपिता परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति और शाश्वत स्थान- सतलोक (स्थान-धाम) को प्राप्त होगा। यही हैं/ श्री कृष्ण जन्माष्टमी/ कान्हा की पूजा/ अकाल मृत्यु का भय नहीं/ स्वर्ग लोक में स्थान/ श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा/ संतान की प्राप्ति/ जन्माष्टमी/ गोकुलाष्टमी/धर्म शास्त्रों के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन/ भगवान श्रीकृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से पृथ्वी पर जन्म लिया/ हर साल/ इस दिन/ भक्त/ श्रद्धा/ हर्षोल्लास के साथ/ भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं/
“ओ कान्हा अब तो मुरली की मधुर सुना दे तान“,
“मेरे सांवरे सलोने कन्हैया तेरा जलवा कहां पर नहीं है“
समग्र का सनातन सौंदर्य/ श्रीकृष्ण जितने अलौकिक/ विस्मयजनक रूप से विराट हैं/ वैसे ही सामान्य लोकजीवन में रचे-पगे सरलता और सहजता को स्वीकार करने में भी बेमिसाल हैं/ ऐसी विस्तृत व्याप्ति वाला कोई दूसरा लोकनायक दूर-दूर तक नहीं दिखता/ विलक्षण लीलाएं लघु-महान की आंख-मिचौली करती/ जन्म से लेकर बाल्यावस्था/ कैशोर्य/ युवावस्था/ प्रौढ़ावस्था/ वृद्धावस्था से होते/ लीला-संवरण तक का समग्र कृष्ण-चरित/ अपने भीतर अनगिन कौतूहलों को सहेजे हुए है/
निसंदेह/ यह मोहक रूप परिपूर्णता की कसौटी है/ कृष्णचरित/ पूर्णावतार कृष्ण/ उन सभी अन्तर्विरोधों के बीच अच्युत खड़े हैं/
जहां मर्यादाओं का निर्वाह है/अहितकर होने पर उन्हें तोड़ते भी हैं/ फिर पहले से बड़ी नई मर्यादा भी खड़ी करते हैं/ फिर/ आवश्यकता पड़ने पर उस मर्यादा का भी अतिक्रमण करते हैं/ एक अनथक यात्री कृष्ण को किसी तरह का विश्राम नहीं है/ सोच-विचार/ कर्म की दुनिया में वे एक क्रांति हैं/ धर्मप्रधान संस्कृति की स्थापना के लिए एक प्रतिमान हैं/
ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, वैराग्य और मोक्ष जैसे उदात्त गुणों के समन्वय के साथ यदुकुलनंदन श्रीकृष्ण साक्षात भगवान हैं/ इसी स्वरूप में वे पूजित हैं/ वस्तुतः दिव्य जन्म और कर्म वाले श्रीकृष्ण/ अखंड जीवन की साधना के निकष हैं/वे ऐसे देव हैं/ जो लगातार मनुष्य बनने की ओर अग्रसर हैं/ निर्लिप्त भोगी/ त्यागी/योगी के रूप में वे क्या कुछ नहीं करते/ उनकी अछोर भूमिकाएं/ लोक मानस को चमत्कृत करती हैं/ लोक में रमते श्रीकृष्ण लोकोत्तर गुणों की खान हैं/
माधुर्य के स्वामी श्रीकृष्ण/उनकी लीलाओं/प्रेमपगी मुरली की मधुर तान/ विभोर होते भक्त/ अपरूप लावण्य के अधिपति श्रीकृष्ण/ सत्/ चित् और आनंद/ ज्ञान/ कर्म/ भक्ति की त्रिवेणी/ नारायण योगेश्वरेश्वर/ सदैव निर्लिप्त/ सूक्ष्म से विराट तक की अभिव्यक्ति/श्रीकृष्ण के आख्यान/यशोदानंदन/ कान्हा/ गोपाल/ गोविंद, राधावर/ गिरिधर/ गोपीकृष्ण/ बंशीधर/ सुदर्शनधारी/ पार्थसारथी/पूर्ण मन की उत्कट उछाल/ कृष्णचरित/ तत्व विलक्षण की सक्रियता/ लोभ/ मोह/ मद/ ईर्ष्या/ भय की सारी सीमाओं को तोड़ता/ मुक्त करता/ विराट तक की यात्रा कराता/ कृष्ण की गाथा विद्या/ विनय/ क्षमा/ शौर्य/ औदार्य/ धैर्य/ संतोष/ मैत्री/ लोकसंग्रह का कीर्तिमान जहां स्थापित है/
लोकपुरुष श्रीकृष्ण का निषेध/ अपमान/ राज-मद/ दर्प और अहंकार का खंडन और प्रतिकार करते वहीं से राह निकलता/ एकसूत्रता/ अव्यय भाव को समेटे/ पहचानने की दृष्टि को व्यक्त करता/ सात्विक ज्ञान के प्रमुख प्रवक्ता/ कृष्ण-भाव की कामना/ आश्वस्त होते/ लघुता में विराटता/ साधारण में अलौकिक का दर्शन जहां है वही तो श्रीकृष्ण हैं/ कर्म से फल तलाशने वाले/आत्मा/जीव/वस्त्र/सांसें/जीवोत्पत्ति/अवधारणा/संपूर्ण अध्यात्म/पूर्ण वेग/आभा/रास में विभोर/गोपियों के बीच प्रेम का रसास्वादन/वहीं, स्त्रीत्व का संपूर्ण रक्षक/एक पुकार/चीरहरण करता दुस्सासन/सामने द्रोपदी की पुकार…हे कृष्ण…कान्हा तेरी जोहत रह गई बाट में भी छुपा श्रीकृष्ण का संपूर्ण धर्मशास्त्र/नैतिक बोध समर्पण भाव का दिव्य ज्ञान/क्या युधिष्ठिर ने मुझसे पूछा था/जब दुर्योधन की शकुनी पाशा फेंकेगा/चलेगा/पांडवों का श्री कृष्ण क्यों नहीं…यही तो धर्मयुद्ध है… Manoranjan Thakur के साथ