Rooh Afza Story: गुलाबी रंग का मीठा-ठंडा शरबत रूह अफ़ज़ा (Rooh Afza) सिर्फ गर्मियों में राहत देने वाला एक ड्रिंक नहीं है, बल्कि 100 साल से भी पुरानी एक लेगेसी का नाम है। लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी शुरुआत कैसे हुई थी? आइए जानते हैं उस शख्स की कहानी, जिन्होंने एक छोटे से दवाख़ाने से इसकी नींव रखी थी।
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हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने की थी शुरुआत
साल 1906 में, यूनानी चिकित्सा पद्धति (Unani Medicine) पर आधारित रूह अफ़ज़ा को हकीम हफीज़ अब्दुल मजीद ने तैयार किया था। उन्होंने दिल्ली के ‘हाउस काज़ी’ इलाके में हमदर्द नाम की कंपनी की स्थापना की, जो बाद में यूनानी दवाओं और हर्बल इलाज (Herbal Remedies) के लिए मशहूर हो गई।
1883 में जन्मे हकीम अब्दुल मजीद को बचपन से ही ट्रेडिशनल मेडिसिन्स में गहरी रुचि थी। उन्होंने फारसी और उर्दू के साथ-साथ यूनानी चिकित्सा में भी विशेषज्ञता हासिल की थी।
Rooh Afza Story: एक छोटे दवाखाने से प्रोडक्शन हाउस तक का सफर
1906 में दिल्ली में एक छोटी सी हर्बल दवाओं की दुकान से शुरू हुई हमदर्द, 1920 तक एक प्रोडक्शन हाउस में तब्दील हो गई थी। इसी दौरान गर्मी से राहत देने के लिए हकीम मजीद ने बेशकीमती जड़ी-बूटियों और सिरप से रूह अफ़ज़ा तैयार किया।
रूह अफ़ज़ा का मतलब होता है – “आत्मा को ताजगी देने वाला“। यह ड्रिंक शरीर को ठंडक देने के साथ-साथ आत्मा को भी सुकून पहुंचाने के लिए बनाया गया था।
रूह अफज़ा का लेबल भी था खास
1910 में, कलाकार मिर्ज़ा नूर अहमद ने रूह अफ़ज़ा के लिए एक रंगीन लेबल डिज़ाइन किया। उस समय भारत में रंगीन प्रिंटिंग एक बड़ी चुनौती थी। इसलिए इसका लेबल मुंबई के पारसी प्रेस ‘बोल्टन प्रेस‘ में छपवाया गया। इस खूबसूरत लेबल की वजह से भी रूह अफ़ज़ा की लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ।
1947 के बाद भी कायम रहा ब्रांड का जादू
1947 के भारत विभाजन के दौरान हमदर्द कंपनी भी दो हिस्सों में बंट गई — एक भारत में रहा और दूसरा पाकिस्तान में स्थापित हुआ। दोनों देशों में रूह अफज़ा आज भी बेहद लोकप्रिय है।
साल 2019 में, कुछ आवश्यक जड़ी-बूटियों की कमी के चलते रूह अफज़ा के प्रोडक्शन में थोड़ी दिक्कतें आईं, फिर भी इसकी लोकप्रियता बरकरार रही।
आज भी रूह अफज़ा न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में गर्मियों के मौसम का सबसे पसंदीदा हर्बल ड्रिंक बना हुआ है।