नई दिल्ली: यूएस फेडरल रिज़र्व द्वारा हाल ही में ब्याज दरों में कटौती किए जाने के बावजूद, भारतीय रुपये की गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। वैश्विक बाज़ारों में छाई अनिश्चितता, विदेशी पूंजी की लगातार निकासी और आयातकों द्वारा अमेरिकी डॉलर की बढ़ती मांग ने भारतीय मुद्रा पर गहरा दबाव बना दिया है। इसी कारण गुरुवार को अंतरबैंकिंग विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया एक बार फिर बड़ी गिरावट के साथ खुला और 17 पैसे लुढ़ककर प्रति डॉलर 90.11 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। यह स्थिति निवेशकों और नीति-निर्माताओं, दोनों के लिए चिंता का विषय बन गई है।
रुपये पर क्यों बढ़ा दबाव?
बाज़ार विश्लेषकों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ‘जोखिम से बचने की भावना’ (Risk-Off Sentiment) काफी मजबूत बनी हुई है। इसका मतलब है कि निवेशक सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर तेज़ी से रुख कर रहे हैं, जिनमें अमेरिकी डॉलर और सोना प्रमुख हैं। डॉलर की बढ़ती मांग ने भारतीय करेंसी पर अतिरिक्त दबाव बनाया है। इसके अलावा, घरेलू शेयर बाजारों में पिछले कुछ सत्रों से जारी कमजोरी और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा लगातार की जा रही बिकवाली ने रुपये की गिरावट को और गहरा कर दिया है।
- बुधवार को विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 1,651.06 करोड़ रुपये की बड़ी निकासी की।
- गुरुवार को रुपया 89.95 के स्तर पर कमजोर खुला और जल्द ही 90.11 के निचले स्तर पर पहुंच गया। यह पिछले बंद भाव 89.87 की तुलना में 17 पैसे की गिरावट थी।
डॉलर इंडेक्स और घरेलू बाजार का हाल
इस बीच, डॉलर इंडेक्स—जो दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर की ताकत को मापता है—में 0.15% की हल्की गिरावट देखी गई और यह 98.63 पर रहा। हालांकि, डॉलर इंडेक्स में इस मामूली गिरावट का भी भारतीय रुपये को कोई खास सहारा नहीं मिल पाया।
घरेलू शेयर बाजार में गुरुवार को शुरुआती कारोबार में मामूली बढ़त दर्ज की गई। बीएसई सेंसेक्स 80.15 अंकों की बढ़त के साथ 84,471.42 पर और एनएसई निफ्टी 50 भी 34.40 अंक चढ़कर 25,792.40 पर कारोबार कर रहा था। लेकिन इक्विटी बाजार की यह क्षणिक मजबूती भी रुपये को सपोर्ट देने में नाकाम रही, क्योंकि विदेशी पूंजी का बहिर्गमन लगातार जारी है।
कच्चे तेल की स्थिति और आगे की राह
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल 0.22% की हल्की बढ़त के साथ 62.35 डॉलर प्रति बैरल पर बना हुआ है। सामान्य परिस्थितियों में कच्चे तेल के दामों में स्थिरता भारतीय अर्थव्यवस्था और रुपये के लिए राहत का संकेत होती है, लेकिन मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं और कमजोर निवेश भावना के चलते इसकी सकारात्मकता भी रुपये को संभालने में सक्षम नहीं दिख रही है।
बाजार के जानकार बताते हैं कि निवेशक इस समय अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता पर पैनी नजर रखे हुए हैं। यदि इन वार्ताओं से कोई सकारात्मक संकेत उभरते हैं, तो आने वाले दिनों में रुपये में कुछ मजबूती देखने को मिल सकती है। हालांकि, जब तक विदेशी निवेशकों की बिकवाली, डॉलर की मांग और वैश्विक अस्थिरता बनी रहेगी, तब तक भारतीय मुद्रा पर दबाव बने रहने की आशंका है।


