बिहार में जातीय जनगणना पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई। सुनवाई से पहले ही दो जजों की बेंच में एक जस्टिस संजय करोल ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया।
जानकारी के अनुसार, पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को अंतरिम आदेश जारी कर जातिगत गणना पर रोक लगा दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर नीतीश सरकार ने जातिगत गणना पर से रोक हटाने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट के पास तीसरी बार यह केस पहुंच रहा है। पहले, दो बार बिहार में जातीय जनगणना को असंवैधानिक करार देने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अपील की थी। दोनों ही बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे हाईकोर्ट का मसला करार दिया।
चार मई को अंतरिम फैसले में पटना HC ने राज्य सरकार के इस तर्क को मनाने से इंकार कर दिया था कि ये एक जाति आधारित गणना थी। HC ने इस मामले पर 3 जुलाई को अगली तारीख दी थी और जाति आधारित जनगणना पर रोक भी लगा दी थी।
इसके बाद सरकार ने जल्द मामले की सुनवाई को लेकर अपील की थी, जिसे भी नकार दिया गया था। इसके बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि यहां भी बुधवार को सुनवाई टल गई। पढ़िए पूरी खबर
संजय करोल सुप्रीम कोर्ट के जज बनने से पहले पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। खुद को सुनवाई से अलग करके के पीछे उन्होंने कोई वजह नहीं बताई।
जानकारी के अनुसार, वर्ष 1983 में वकालत शुरू करने वाले संजय करोल हिमाचल हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस, त्रिपुरा के चीफ जस्टिस और पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं।
राज्य सरकार को उम्मीद थी की कोर्ट का फैसला आज उनके पक्ष में होगा, लेकिन इस मामले की सुनवाई आज टल गयी। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वी चन्द्रन की बेंच ने हाईकोर्ट में 3 जुलाई को अगली सुनवाई का आदेश दिया था। इसके बाद राज्य सरकार ने ये मांग की थी की इस मामले की सुनवाई में देरी न हो।
इधर, पटना हाईकोर्ट ने 04 मई को अंतरिम फैसले में बिहार सरकार के तर्क को अस्वीकार किया था कि वह जाति आधारित गणना थी। पटना हाईकोर्ट ने 03 जुलाई को अगली तारीख देते हुए बिहार में जाति आधारित जनगणना पर अंतरिम रोक लगाई थी तो सरकार ने जल्द तारीख देने की अपील की।
वह अपील भी बेकार गई तो हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में अंतिम फैसले का लक्षण मानते हुए बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बुधवार को सुप्रीम अदालत में इसकी सुनवाई टल गई।
दूसरी ओर, लालू यादव ने भी आज ट्वीट कर केंद्र सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि “केंद्र सरकार घड़ियाल की गिनती कर लेती है लेकिन देश के बहुसंख्यक गरीबों, वंचितों, उपेक्षितों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों की नहीं? उन्होंने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर आप को गरीबों पिछड़ों से इतनी नफरत क्यों है।
सुप्रीम कोर्ट के पास तीसरी बार यह केस पहुंच रहा है। पहले, दो बार बिहार में जातीय जनगणना को असंवैधानिक करार देने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अपील की थी। दोनों ही बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे हाईकोर्ट का मसला करार दिया।
दोनों बार बिहार सरकार को राहत मिली, लेकिन जब पटना हाईकोर्ट ने राज्य की नीतीश कुमार सरकार के निर्णय के खिलाफ अंतरिम फैसला सुनाते हुए जुलाई की तारीख दे दी तो अब तीसरी बार यह केस सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। बुधवार को छह नंबर कोर्ट में 47वें नंबर पर इसकी सुनवाई होने वाली थी।