बिहार सरकार (Bihar Government) को बड़ा झटका लगा है। बिहार में जातिगत जनगणना पर रोक लग गई है। पटना हाईकोर्ट से नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगते ही पूरा बिहार एकबारगी सन्न रह गया है।
पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने गुरुवार को बिहार में जातीय गणना पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है। इससे नीतीश सरकार को अदालत से बड़ा (Caste Census In Bihar Patna High Court Verdict Big Shocking To Nitish Kumar Government) झटका लगा है।
पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने जातीय गणना पर रोक लगा दी है। अब 3 जुलाई 2023 को अगली सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस की बेंच ने आदेश दिया है कि गणना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। साथ ही डाटा को संरक्षित रखने के निर्देश दिए गए है। अब 3 जुलाई 2023 को अगली सुनवाई होगी।
जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर गुरुवार (4 मई) को पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने फैसला सुनाया है। बिहार सरकार (Bihar Government) के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि तीन दिन में सुनवाई कर पटना हाई कोर्ट इस मामले में अंतरिम आदेश दे. बिहार सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही पटना हाई कोर्ट में अपनी दलील रख रहे थे। अब नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है।
पटना हाई कोर्ट ने कहा है अगली सुनवाई तीन जुलाई को होगी। तब तक कोई डाटा सामने नहीं आएगा। याचिकाकर्ता के वकील ने बताया है कि कोर्ट ने कहा है कि इसमें तीन जुलाई को डिटेल में सुनवाई होगी। फिलहाल कोर्ट से यह निर्णय आने के बाद कहीं न कहीं नीतीश सरकार को बड़ा झटका लगा है। हालांकि अब तीन जुलाई के बाद देखना होगा कि कोर्ट का निर्णय क्या होता है।
दरअसल, 2 और 3 मई को हाईकोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने ये जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना और आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है। कोर्ट ने ये भी पूछा था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं। साथ ही ये भी जाना था कि क्या इससे निजता का उल्लंघन होगा?
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर है। उन्होंने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार जातियों की गणना व आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है।
ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। दीनू कुमार ने आगे बताया था कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है। ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है। उन्होंने कहा था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पांच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है। दूसरी तरफ राज्य सरकार का कहना था कि जन कल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर सुधारने के लिए ये सर्वेक्षण कराया जा रहा है।