कुमार गौरव, मधुबनी देशज टाइम्स। बेहद मुंहफट आदमी, जो मुंह में आया बक दिया। जो दिल में आता था, उसे शब्दों का बाण बनाकर सामने वाले पर दाग देते थे। ये बात तो सोचते भी नहीं थे कि सामने वाले को इसका बुरा लगेगा या नहीं। पेश हैं कुछ ऐसे किस्से, जो बॉलीवुड में बहुत मशहूर हैं।
हिंदी सिनेमा जगत में यूं तो अपने दमदार अभिनय से कई सितारों ने दर्शकों के दिल पर राज किया लेकिन एक ऐसा भी सितारा हुआ, जिसे सिर्फ दर्शकों ने ही नहीं बल्कि पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री ने भी ‘राजकुमार’ माना और वह थे संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कुलभूषण पंडित उर्फ राजकुमार।
आज महान फिल्म अभिनेता सुपर स्टार राजकुमार को उनके जन्मदिन पर हमारी श्रद्धाजंलि। जन्म दिन पर विशेष आज ही के दिन 8 अक्टूबर 1926 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान के लोरलाई में जो अब पाकिस्तान में है।
उनका कश्मीरी पंडित परिवार में जन्म हुआ था। वे पढ़ाए पूरी कर्मेबके बाद पुलिस सब इंस्पेक्टर की नौकरी पकड़े। राजकुमार साहब मुंबई के जिस पुलिस स्टेशन में कार्यरत थें ।वहां अक्सर फिल्मी दुनियां से जुड़े लोगों का आना जाना लगा रहता था।
एक रोज पुलिस स्टेशन में फिल्म।निर्माता निर्देशक बलदेव दुवे अपने किसी काम से आए तब वे राजकुमार के बातचीत से बहुत प्रभावित हो उन्हे फिल्मों में काम करने का आफर दिया ।जिसके बाद उन्होंने सब इंस्पेक्टर की नौकरी छोड़ कर फिल्म में आए गए।
26 वर्ष की आयु में उनकी पहली फिल्म 1952 में रंगीली रिलीज हुई ।1957 में मदर इंडिया इस फिल्म में उन्होंने किसान के रूप में एक छोटासा अभिनय किया । फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली। इस फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने दर्शको के दिल में बतौर अभिनेता जगह बनाने में कामयाब हुए और फिल्म इंद्रस्ट्री में स्थापित हो गए।
अपनी बेबाक सैली ,एक्टिंग,स्टाइल और खुद से डायलॉग बोलने के कारण फिल्मी दुनिया में छाते चले चले गए। 1959 में पैगाम, 1960 में दिल अपना और प्रीत पराई। इसी समय में एक एयर होस्टेस से उनकी मुलाक्त हुई जो एंग्लो इंडियन थी।
उनका नाम जेनिफर था। उनसे राजकुमार साहब की शादी हो गई। जेनिफर ने हिंदू रितिरीबाज को अपनाते हुए अपना नाम गायत्री कुमार रख लिया। इसके बाद 1961 में घराना। 1963 में गोदाम। 1964 में दिल एक मंदिर, दूज का चांद।
1965 में काजल ,वक्त। 1967 हमराज। 1968 नीलकमल, मेरे हुजूर। 1970 में हीर रांझा,1971 पाकीजा। 1978 कर्मयोगी। 1980 बुलंदी। 1981 कुदरत। 1982 में धर्मकांटा। 1984 शरारा। 1984 में राज तिलक,एक नई पहेली। 1987 में मरते दम तक। 1989 सूर्या, जंगबाज। 1990 पुलिस पब्लिक। 1991 सौदागर। 1992 पुलिस और मुजरिम.1993 में देवता।1994 बेताज बादशाह। 1995 गौड फादर और गम बनाने के बाद 3 जुलाई 1996 को उनकी मृत्यु हो गई।
इसके बाद वे हमेशा के लिए गौड के पास चले गए अपने दर्शकों को गम में डूबो दिए।राजकुमार साहब को दो पुत्र हुए एक का नाम पुरु राजकुमार,पाणिनी राजकुमार और पुत्री वास्तविकता पंडित है।
राजकुमार साहब अपने डायलॉग हम तुम्हें मारेंगे, लेकिन बंदूक भी मेरी होगी और वक्त भी मेरा होगा। शेर को सांप, छूछुन्दर काटा नहीं करते, रंगते हुए रास्ते बदल लेते हैं।
देश के गद्दारों से हमारे जूते बात करतें हैं। हम तुम्हें वो मौत देंगे,जो न किसी कानून के किताब में लिखी है, न किसी मुजरिम ने सोची होगी। राणा की जेल में मुर्दा भी बोलने लग जाते हैं। हवाओं के टकराने से पहाड़ रास्ते नहीं बदला करते।
आग से बोलते हो वो जलाती कैसे है, पानी से पूछते हो वो डोबोटी कैसे है। राजकुमार साहब फिल्मों में ही राजकुमार की तरह नहीं रियाल लाइफ में भी राजकुमार की तरह ही जिंदगी का सफर काटें है वे हर फिल्मों में अलग फिल्मी अंदाज के कारण आज भी दर्शकों के दिलों दिमाग पर छाए हुए हैं।