पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार पर 25 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया है। हाई कोर्ट ने बिहार के सीवान नगर परिषद के अध्यक्ष पद से सिंधु देवी को हटाए जाने संबंधी राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए राज्य सरकार पर यह अर्थदंड लगाया है।
सीवान नगर परिषद की अध्यक्ष पद से हटाई गई सिंधु देवी को राहत
जानकारी के अनुसार, जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिकाकर्ता सिंधु देवी की याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था जिसे सुनाते हुए पटना हाईकोर्ट से वित्तीय अनियमितता के आरोप में सीवान नगर परिषद के अध्यक्ष पद से हटाई गई सिंधु देवी को बड़ी राहत भी दी।
पद पर योगदान कराने का आदेश
कोर्ट ने सरकार को कहा कि वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाए जाने के बाद याचिकाकर्ता द्वारा जो अपना स्पष्टीकरण जिलाधिकारी को दिया गया, उसे पूरी तरह से देखा नहीं गया। उसकी बिना जांच किये ही अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
कोर्ट ने सरकार को कहा है कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से उसके पद पर योगदान कराया जाय। कोर्ट ने सरकार को कहा कि यदि वह चाहे तो इस मामले में दिए गए स्पष्टीकरण की जांच अपने स्तर से निष्पक्ष करा सकती है।
इस मामले में पिछली सुनवाई में जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता सिंधु देवी की याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे आज सुनाया गया। कोर्ट ने सरकार को कहा कि अर्थ दण्ड की राशि याचिकाकर्ता को दी जाय, क्योंकि इस बीच उसने बड़ी मानसिक प्रताड़ना झेली हैं।
जानकारी के अनुसार, बिना जांच किए ही अध्यक्ष पद से उन्हें हटा दिया गया था। वित्तीय अनियमितता के आरोप में याचिकाकर्ता से सरकार द्वारा जबाब तलब किया गया था। याचिकाकर्ता द्वारा जो स्पष्टीकरण सरकार को दिया गया, उस पर सरकार द्वारा बिना विचार विमर्श किए और उसकी बिना जांच किये ही अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।
वित्तीय अनियमितता के आरोप में सीवान नगर परिषद की अध्यक्ष पद से हटाई गई सिंधु देवी को राहत देते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को अर्थदंड की राशि याचिकाकर्ता को देने का निर्देश यह देते हुए कहा कि इस बीच याचिकाकर्ता ने बड़ी मानसिक प्रताड़ना को झेला है।
कोर्ट ने कहा कि वित्तीय अनियमितता का आरोप लगने के बाद याचिकाकर्ता ने जो स्पष्टीकरण डीएम को दिया, उसे पूरी तरह से नहीं देखा गया और बिना जांच किये ही उसे अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता को अविलंब उसके पद पर योगदान कराया जाए और अगर सरकार चाहे तो मामले में याचिकाकर्ता की ओर से दिये गये स्पष्टीकरण की जांच करा सकती है।
वित्तीय अनियमितता के आरोप में सरकार ने याचिकाकर्ता से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने स्पष्टीकरण सरकार को दिया था लेकिन सरकार ने उसकी जांच किये बगैर ही याचिकाकर्ता को अध्यक्ष पद से हटा दिया था।