मुख्य बातें : प्रेत बाधा मुक्ति स्थान के रूप में प्रसिद्ध उर्स मेले में जुटते हैं भारत और नेपाल के अलग अलग हिस्सों से श्रद्धालु, पीर बाबा मकदूम शाह के मजार पर मिट जाते हैं हिंदू व मुसलमान में फर्क, बकरीद के एक दिन पहले लगता है उर्स मेला, फरियादियों के खाली हाथ नहीं लौटने की है मान्यता, देशज टाइम्स फोटो 1: मजार परिसर में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़, फोटो 2: उर्स मेले में प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए आयी पीड़ित महिला, फोटो 3: उर्स मेले के दौरान विधि व्यवस्था में तैनात पुलिस बल
मधुबनी, देशज टाइम्स ब्यूरो। अंधराठाढ़ी प्रखंड के अलपुरा गांव स्थित पीर बाबा मकदूम शाह की मजार पर लगने वाले प्रसिद्ध उर्स मेला बुधवार को संपन्न हो गया। यह उर्स मेला प्रखंड के प्राचीनतम मेलों में से एक है। प्रेत बाधा मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है।
मेला बकरीद के एक दिन पहले लगता है। मान्यता है कि पीर बाबा मकदूम शाह की मजार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है। जो भी यहां आकर अपनी झोली फैलाता है, पीर बाबा उसकी मुराद जरूर पूरी करते हैं।
हिंदू और मुस्लिमों का यहां कोई भेदभाव नहीं रहता। प्रत्येक वर्ष फरियादियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बहुत बड़ी संख्या में फरियादी और मन्नत पूरी होने के बाद मन्नत चढ़ाने वाले बाबा के मजार पर जुटते हैं।
मुंबई, बंगाल, नेपाल, दिल्ली, बेंगलुरू, उड़ीसा, नेपाल समेत कई सुदूरवर्ती इलाकों से भी श्रद्धालु और फरियादी यहां जुटते हैं। प्रेतबाधा से ग्रस्त लोगों को लेकर दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। प्रेत बाधा से मुक्ति पाये लोग भी अपनी मन्नत चढ़ाने यहां आते हैं।
मनौती चढ़ाने वाले लोग यहां बकरे और मुर्गे की कुर्बानी देते हैं। और, यहीं पकाकर उसका प्रसाद ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि पीर मकदूम शाह अपने जमाने के प्रसिद्ध और ख्याति प्राप्त फकीर थे। यहां के उर्स मेले के लिये जमीन मुगल बादशाह ने दी थी।
कालांतर में उर्स की जमीन अतिक्रमण का शिकार होकर मजार वाले भूखंड के कुछ ही कट्ठों में सिमट कर रह गया है। मुगलकाल से शुरू यह उर्स मेला बकरीद से एक दिन पहले लगता और शाम होते होते ये खत्म हो जाता है।
इस मेले में श्रद्धालु एक रात पहले ही यहां जमा होने लगते हैं।मजार के सरपरस्त महबूब रजा कमाली और मेला इंतजामिया कमेटी के सदस्यों ने देशज टाइम्स को बताया कि विधि व्यवस्था के लिए पुलिस प्रशासन और मेला कमेटी के लोग सतर्क और तैनात थे। किंतु, फरियादी और श्रद्धालुओं के ठहरने के लिये सराय, बिजली, पानी आदि की कमी खली थी।