Madhubani Lok Sabha Election| किले में “चौका”…या चौंकाएगा मधुबनी। सवाल यही से है। अंत की शुरूआत बीस मई को। समापन चार जून को परिणाम के साथ जहां, मधुबनी लोकसभा सीट जाति के समीकरण में ऐसा विभाजित और विभक्त है। जीत-हार के पैमाने उसी के बदौलत प्रत्याशी तय करेंगे। कारण, आज रविवार का दिन चुनावी अंतिम ओवर है। Singhwara से Syed Anwar की Report
Madhubani Lok Sabha Election| मतदाताओं को एकजुट करने की लगभग पूरी हो चुकी जीद, अब स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों की नहीं, हावी होने की राह पर है।
मतदाताओं को एकजुट करने की लगभग पूरी हो चुकी जीद, अब स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों की नहीं, हावी होने की राह पर है। जहां, प्रमुख मुकाबला के लिए दो पक्ष, बिल्कुल आमने-सामने हैं। मगर, किस्मत आजमाते अन्य, रोमांचक ओवर के आखिरी क्षण तक इम्पैक्ट प्लेयर के तौर पर दिख रहे। कारण, यह चुनाव है। चुनाव में, किस करवट क्या बैठे, कब बैठे, कहना मुश्किल।
Madhubani Lok Sabha Election| चुनावी समीकरण, उनकी झोंकी ताकत मायने तो रखती हैं।
ऐसे में,मधुबनी लोकसभा के लिए रोमांचक चुनाव 20 मई यानि कल सोमवार को होने वाला है। यहां कुल बारह प्रत्याशियों में लोग यही मानकर चल रहे, मुख्य मुकाबला एनडीए एवं इंडिया गठबंधन के बीच है। लेकिन, एआईएमआईएम, अन्य दलों और निर्दलीय प्रत्यशियों के चुनावी समीकरण, उनकी झोंकी ताकत मायने तो रखती हैं।
Madhubani Lok Sabha Election| एआईएमआईएम की इंट्री से नफा-नुकसान और ध्रुवीकरण के संकेत
एआईएमआईएम की इंट्री से राजनीतिक गलियारों में नफा-नुकसान और ध्रुवीकरण के कयास लगाए जा रहे हैं। इस बीच आम मतदाताओं की चुप्पी ने प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ा रखी है। ग्रामीण क्षेत्र में लोकसभा चुनाव को लेकर चहल पहल नही देखी जा रही है। सामान्य दिनों की तरह लोग अपने काम काज में व्यस्त हैं। जब, चुनावी शोर था, कल शानिवार से तो प्रचार थम चुका है, पहले भी यदा-कदा किसी प्रत्याशी का चुनाव प्रचार वाहन गांव से गुजरता मिला है। लोग उसे भी एकबार सुनते, फिर वापस अपनी दिनचर्या में लग जा रहे थे। अब तो कल चुनाव है।
Madhubani Lok Sabha Election| जनता भी चुपचाप सबको भांपती आ रही है।
ऐसे में, स्थानीय मुद्दे और राष्ट्रीय मुद्द की चर्चा भी अब थम गई है। लोग बस वोट डालने की तैयारी में हैं। जहां, जातियों के नाम पर वोट की जुगलबंदी पहले ही प्रत्याशी कर चुके हैं। अंदरखाने कसर अभी भी जारी है। इंडिया गठबंधन ‘मधुबनी मांगे परिवर्तन’ टैग लाइन लेकर चुनावी मैदान में है। एनडीए अबकी बार चार सौ पार के साथ। जो लोकसभा क्षेत्र के स्थानीय प्रत्याशी हैं, वह बाहरी हटाओ, मधुबनी बचाओ का नारा लेकर गांवों में आए। इन सबके बीच विकास के स्थानीय मुद्दे कभी दिखे नहीं, गौण रहे। जनता भी चुपचाप सबको भांपती आ रही है।
Madhubani Lok Sabha Election| कभी कांग्रेस और कम्युनिस्टों का गढ़ रहा मधुबनी
कभी कांग्रेस और कम्युनिस्टों का गढ़ रहा मधुबनी लोकसभा सीट अब बीजेपी का मजबूत किला बन चुका है। पिछले तीन चुनावों में बीजेपी ने अपने विरोधियों को परास्त करते हुए मधुबनी में कमल खिलाया है। जीत का चौका लगाने की तैयारी के साथ बीजेपी ने इस बार भी मौजूदा सांसद अशोक कुमार यादव को चुनावी दंगल में उतारा है तो महागठबंधन ने अली अशरफ फातमी पर दांव लगाकर एमवाई समीकरण को साधने की कोशिश की है। देखना यह होगा कि क्या अशोक कुमार यादव अपनी विरासत बचा पाते हैं या अली अशरफ फातमी मधुबनी का किला फतह करेंगे।
Madhubani Lok Sabha Election| मार्जिन का खेल बड़ा है
मधुबनी लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की छह सीटें आती हैं। जिनमें केवटी और जाले दरभंगा जिले में हैं। जबकि मधुबनी, हरलाखी, बेनीपट्टी, और बिस्फी मधुबनी जिले में हैं। इन छह सीटों में मधुबनी को छोड़कर 5 सीटों पर एनडीए का कब्जा है। मधुबनी लोकसभा सीट से भाजपा ने 2019 में जीत की हैट्रिक लगाई थी। अशोक कुमार यादव ने वीआईपी के बद्री कुमार पूर्वे को 4 लाख 54 हजार से अधिक मतों के अंतर से मात दी थी।
Madhubani Lok Sabha Election| ये तय करेंगे फैसला
समीकरण की बात करें तो यहां सबसे अधिक ब्राह्मण वोटर्स हैं। और दूसरे नंबर पर यादव मतदाताओं की संख्या है। इसके अलावा मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाती है। अति पिछड़े मतदाताओं की संख्या छह लाख से अधिक है तो दलित दो लाख से ऊपर और कोइरी मतदाताओं की संख्या भी एक लाख से अधिक है।
Madhubani Lok Sabha Election| यह रहा है समीकरण
कहते हैं। ब्राह्मण, यादव, मुस्लिम और अतिपिछड़ा की बहुतायत है मधुबनी लोकसभा चुनाव में। यहां, अब तक यादव पांच बार, मुस्लिम तीन बार और ब्राह्णण प्रत्याशी चार बार चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में, मधुबनी का मिजाज मापदंड पर कहां उतरता है, जातिगत उलझनों में कितना उलझा है, बहुतायत के बाद भी जीत का स्वभाव क्या कहता है, यह समझना मुश्किल है। जात से जीत के पैमाने के काशिदें हर चुनाव में गढ़े, लिखे, कहे जाते रहे हैं।
Madhubani Lok Sabha Election| लेकिन, जनता क्या चाहती है, उसे क्या चाहिए…यही वोट की ताकत है
लेकिन, जनता क्या चाहती है, उसे क्या चाहिए…यही वोट की ताकत है, लोकतंत्र की चोट है, जो फिर से बीस मई को पड़ेगा और मधुबनी फिर से जीतेगा…जहां,1977-हुक्मदेव नारायण यादव, जनता पार्टी, 1980 जनवरी- शफ़ीकुल्ला अंसारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (चुनाव के चार महीने बाद शफीकुल्ला अंसारी का निधन हो गया) 1980 मई- भोगेन्द्र झा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, (उपचुनाव), 1984 – मौलाना अब्दुल हन्नान अंसारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1989-भोगेंद्र झा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, 1991 – भोगेन्द्र झा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, 1996-चतुरानन मिश्र, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, 1998 शकील अहमद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1999-हुक्मदेव नारायण यादव, भारतीय जनता पार्टी, 2004-शकील अहमद,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,2009 – हुक्मदेव नारायण यादव, भारतीय जनता पार्टी, 2014-हुक्मदेव नारायण यादव, भारतीय जनता पार्टी, 2019-अशोक कुमार यादव, भारतीय जनता पार्टी के नाम जीत दर्ज है।