मधुबनी, देशज टाइम्स ब्यूरो।जिला मुख्यालय के प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. उमेश चंद्रा कर्ण का निधन ससमय इलाज नहीं होने के अभाव में शुक्रवार की रात्रि हो गया।
डॉ. उमेश चंद्रा की तबीयत खराब होने के बाद परिजन बेहतर इलाज कराने के लिए डीएमसीएच पहुंचे। डीएमसीएच पहुंचते ही अस्पताल प्रशासन की ओर से पहले कोरोना जांच कराने के बाद ही इलाज करने की बात कही गई। इसके बाद परिजन उसे निजी अस्पताल पारस गए। परंतु पारस अस्पताल प्रबंधन की ओर से कथित तौर पर कोरोना बताकर इलाज करने से इंकार कर दिया गया।
फिर परिजन डीएमसीएच पहुंचे। लेकिन भाग-दौड़ में ही समय बीत गया। ससमय इलाज नहीं होने के कारण डीएमसीएच में डॉ. चंद्रा ने दम तोड़ दिया। डॉ. चंद्रा के दुखद देहावसान से शिक्षा जगत मर्माहत है।
स्थानीय जगदीश नंदन महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. उमेश चंद कर्ण के देहावसान से मधुबनी के प्राध्यापकों ने स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति काफी रोष है। निजी व सरकारी स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था कहें या फिर मनमानी!
डॉ. उमेश चंद्र की तबीयत बुखार रहने के कारण खराब होती है। इसके बाद परिजन उनका बेहतर इलाज कराने के लिए अस्पताल दरभंगा पहुंचे। परंतु इस अस्पताल से उस अस्पताल आने-जाने में समय गुजर गया। आखिरी में डॉ. उमेश चंद्रा दम तोड़ देते हैं।
अब सवाल उठता है, चंद्रा की मौत का जिम्मेदार कौन है? चन्द्रा की पुत्री रंजना कर्ण ने कहा, डीएमसीएच व पारस अस्पताल के प्रबंधन के कथित बदसलूकी व ससमय इलाज नहीं होने के कारण उनके पिता की मौत हुई है।
उन्होंने देशज टाइम्स को बताया, उनके पिता को महज बुखार ही था परंतु उनका इलाज समय पर नही हो सका, जिस कारण मौत हो गई। रंजना कर्ण ने सरकार से मांग की है कि उनके पिता की मौत की जांच कराकर दोषी अस्पताल व्यवस्थापकों पर कार्रवाई की जाए।
वहीं, जेएन कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. दमन कुमार झा ने बताया, प्रो. उमेश बाबू जंतु विज्ञान के क्षेत्र में अच्छी शोहरत हासिल की थी। जेएन कालेज मेें अपनी सेवाकाल में उनके दिशा निर्देशन में विज्ञान के छात्रों को काफी लाभ मिलती थी। राज्य सरकार के अस्पतालों व प्राइवेट क्लीनिक में कोरोना के डर से सामान्य बीमारियों का इलाज नहीं होना दुखद है। डॉ. उमेश चन्द्रा के साथ स्वास्थ्य विभाग की कथित दुर्व्यवहार हुुआ है। तथा उनकी मौत हुई।