मई,5,2024
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मधुबनी खादी आयोग में निजी खादी एजेंसी का कब्जा, सरकार ने झाड़ा पल्लू, हजारों लोग हाशिए पर

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मुख्य बातें
मिथिला के गांवों की अर्थिक समृद्धि के लिए खादी को नहीं मिला सपोर्ट, सरकारी संस्थाओं की मदद से सरकार ने किया किनारा,निजी खादी एजेंसी को मिल रहा प्रोत्साहन,सरकारी संस्थाएं उपेक्षित, निजी एजेंसी व्यक्तिगत होने के कारण कर्मी व अधिकारी से करते डील,मधुबनी खादी का हजारों परिवार को मिल रहा था फायदा

 

मधुबनी/ब्यूरो। मिथिलांचल के गांवों की आर्थिक समृद्धि में कभी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला खादी उपेक्षित हाल में है। लगभग हर घर में चलने वाले चरखे की आवाज अब बंद होती जा रही है। गांव की गरीब घरों में आजीविका के मुख्य साधन चरखा और करघा को खूटे से टांग दिया गया है। जिले की हालत को देखे तो यहां के लाखों लोग इस खादी और इसके सहयोगी कारोबार बुनकर से जुड़े रहे हैं।

 

पर आज गांव के गरीबों की आर्थिक समृद्धि का यह साधन दम तोड़ता जा रहा है। इतना ही नहीं मधुबनी की खादी गुणवत्ता के मामले में भी विश्व स्तर पर प्रसिद्ध रहा है। इतने महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसकी उपेक्षा होती रही है। इसे सशक्त करने के लिए कदम उठाने की बजाए इसे खत्म करने की हर संभव कोशिश लगातार होती रही है।

वहीं निजी स्तर पर पंजीकृत खादी संस्थाओं को लगातार प्रोत्साहित किया गया। जानकारी के अनुसार इन संस्थाओं ने खादी पर मिलने वाले छुट का जबर्दस्त बंदरबांट किया। पॉकेट की इन संस्थाओं ने अधिकारियों और कर्मियों के साथ मिलकर इस छुट की राशि का बंदरबांट किया। इस स्तर पर यह आसानी से होता रहा।

क्योंकि बिना खादी के निर्माण के केवल कागज पर निर्माण और बिक्री आसानी से दिखा दिया गया। मामला सामने आने पर छुट के तरीके में बदलाव किया गया है। लेकिन इसका भी लाभ लेने में यह संस्थाएं ही आगे है।

क्योंकि यह संस्थाएं कमीशन का काम आसानी से करने में सफल हो रहा है। सरकारी संस्थाओं को हर कार्यो के लिए हिसाब देना होता है और इन निजी संस्थाओं से हिसाब पूछने वाला कोई नहीं। इस हालत के कारण इन निजी संस्थाओं को ही प्रोत्साहित करने का काम किया जा रहा है।

खादी की अधिक होती है कीमत-

खादी के काम में श्रम लगता है। इसकारण इसका लागत अधिक आता है। सरकारी स्तर पर इस खादी को बढ़ावा देने की नीति जरूर बनी पर इसे लागू कहीं भी नहीं किया गया। अस्पताल, रेलवे, सरकारी कार्यालय और अन्य स्थानों पर खादी के प्रयोग किये जाने का दिया गया आदेश रद्दी की टोकरी में डाल दिया जा रहा है।

अब तो हालत यह है कि जो नेताओं की फौज बापू व गांधी को भुनाने मंे सबसे आगे रहते हैं, उनके भी दिल में उनकी नीति की खादी कहीं नहीं है। उनके घर व उनके शरीर पर यह खादी नदारद हो चुका है। एकबार फिर से पीएम के द्वारा लोकल के लिए वोकल बने के नारे से उम्मीद जगी पर यह साकार कब होगा कहना मुश्किल है।

क्योंकि मधुबनी खादी ग्रामोद्योग मंें लगभग बीस हजार खादी कपड़े से मास्क का निर्माण किया गया। लेकिन पंचायत,नगर निकाय व अन्य सरकारी कार्यो में इसकी पूछ नहीं हुई। क्योंकि यहां इन संस्थाओं को कमीशन की गंुजाइश नहीं होती।

क्या कहते हैं अधिकारी-

मधुबनी जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के जिला मंत्री सरला देवी ने बताया कि विभिन्न स्तरों पर इसके लिए काम किये जा रहे हैं। शीघ्र ही यहां नये कार्यो को शुरू किया जायेगा। ताकि गांधी के उद्देश्य को पूरा करने में सफल हो सके। हां यह जरूरी है कि इसके लिए प्रशासनिक सहयोग मिले।

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