सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून को हल्के में लेने वाले बिजली विभाग के दो अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए वेतन वृद्धि पर रोक लगा दी गई है।
नार्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड
पटना ने बेगूसराय जिले के विद्युत आपूर्ति अवर प्रमंडल बरौनी के तत्कालीन सहायक अभियंता प्रवीण कुमार (वर्तमान में विद्युत कार्यपालक अभियंता केंद्रीय भंडार समस्तीपुर) के दो वार्षिक वेतन वृद्धि पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का दंड दिया है।
इसके साथ ही विद्युत आपूर्ति अवर प्रमंडल बरौनी के तत्कालीन प्रधान लिपिक रंजीत कुमार (वर्तमान में प्रशासी अधिकारी विद्युत आपूर्ति प्रमंडल मुजफ्फरपुर पश्चिमी) के एक वार्षिक वेतन वृद्धि पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का दंड दिया गया है। जबकि तीसरे आरोपी अधिकारी विद्युत आपूर्ति प्रमंडल बरौनी के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता-सह-लोक सूचना पदाधिकारी रतन कुमार को सेवानिवृत्त हो जाने के कारण माफ कर दिया गया है।
नार्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड पटना ने उक्त दोनों अधिकारियों पर नियमानुसार विभागीय कार्यवाही संचालित करने के निष्कर्ष में पाया है कि आवेदक को समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराकर आरटीआई एक्ट 2005 की धारा-7(1) का उल्लंघन करने, लोकसेवक के तौर पर अपने कर्तव्यों की अनदेखी, गलत तथ्य प्रस्तुत करने के साथ अधीनस्थ कार्यालय का समुचित पर्यवेक्षण एवं कार्यालय कर्मियों को ससमय कार्य करने के लिए नियंत्रित करने में लापरवाही की गई थी।
नार्थ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड ने बेगूसराय के शोकहारा-दो निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट गिरीश प्रसाद गुप्ता द्वारा सूचना आयोग पटना में दायर वाद की सुनवाई करते हुए यह कदम उठाया गया है। गिरीश प्रसाद गुप्ता ने बताया कि लोक सूचना अधिकारी ओम प्रकाश की ओर से पूरी कार्यवाही का विवरण उपलब्ध कराया गया है।
उन्होंने बताया कि 2014 में लोक सूचना अधिकारी-सह-विद्युत कार्यपालक अभियंता आपूर्ति प्रमंडल बरौनी को आरटीआई आवेदन के माध्यम से अपने मकान में लगे बिजली कनेक्शन मीटर की गड़बड़ी सुधारने तथा सही बिल के संबंध में पांच बिंदुओं पर सूचना मांगी थी। लेकिन अधिकारियों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया तथा यह सूचना चार वर्ष विलंब से मुहैया कराई।
इसके बाद यह मामला राज्य सूचना आयोग में विचाराधीन चल रहा था। मामले को लेकर विद्युत आपूर्ति प्रमंडल बरौनी के कार्यपालक अभियंता मो. नजमुल हसन अंसारी ने लिखित रूप में आयोग से माफी भी मांगी थी। लेकिन मामले की गंभीरता के आधार पर आयोग ने दो जनवरी 2019 को अपने आदेश में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा-20(2) के तहत विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की तथा अब तीन वर्ष बाद विभाग ने फैसला सुनाया है।