अप्रैल,30,2024
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Madhubani का हर घर अब सुनेगा विहुला मनसा, मंगला गौड़ी, विषहारा, पृथ्वी जन्म, सीता पतिव्रता, उमा पार्वती, गंगा-गौड़ी जन्म की कथा, होगी बासी फूल से माता विषहारा की पूजा…मधुश्रावणी शुरु, हे सीता प्यारी केहन तप केलहुं, गौरी पूजि पूजि वर मांगी लेलहुं

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मुख्य बातें: व विवाहिताओं का खास पर्व मधुश्रावणी नहाय-खाय के साथ शुरु, नुपूर की झंकार से वातावरण हुआ गुलजार, गांव घर में गूंजने लगे विषहारा गीत “विषहरि विषहरि करथि पुकार, राम कतहु ने भेटय छथि जननी हमार……”

मधुबनी/झंझारपुर देशज टाइम्स ब्यूरो। मिथिलांचल के नव विवाहिताओं का खास पर्व मधुश्रावणी नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हो गया। मिथिला समाज में मधुश्रावणी विधि-विधान के साथ मनाने की परंपरा है।

मिथिला संस्कृति के अनुसार विवाह के पहले साल के सावन महीने में नव विवाहिताएं अपने अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत धारण करती है। इसमें नव विवाहिता पति की दीर्घायु होने की मंगलकामना के साथ लगातार मधुश्रावणी व्रत का विधि-विधान से पूजन करती हैं।

सावन के दस्तक के साथ ही नव विवाहिताएं मिथिला की खास लोकपर्व मधुश्रावणी की तैयारियों में जुट जाती हैं। इस खास पर्व में अनायास ही मिथिलांचल संस्कृति की झलक देखने को मिल जाता है।

मिथिला का खास पर्व है मधुश्रावणी :मिथिला पुरातन काल से ही अपने गौरवमयी सांस्कृतिक इतिहास को अपने आंचल में समेटे हुए है। इसके आंचल में अनेको लोक पर्व हैं, जो हमें अनुपम लोकगाथाओं का संदेश देती है। इस लोक पर्व के कड़ी में सावन मास के पंचमी तिथि से नव विवाहिता की ओर से मनाया जाने वाला खास पर्व है मधुश्रावणी।

मधुश्रावणी मुख्यतया मिथिलांचल के ब्राह्मण और कर्ण-कायस्थ परिवार की नव विवाहिता की ओर से अपने सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाने वाला एक खास पर्व है। इस पर्व को लेकर आजकल अन्य वर्ग की महिलाओं में भी रूचि बढ़ी है।

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मधुश्रावणी सावन मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी से प्रारंभ होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को समाप्त होता है। मोटा-मोटी पंद्रह दिनों तक चलने वाला यह पर्व मनोहारी वातावरण का परिचायक है। इस साल मलमास के कारण नवविवाहिता लंबे दिनों तक पूजन अर्चन करेंगी। इस लोकपर्व का आकर्षण व अनुपम व्यवहार देखते ही बनता है।

यह पर्व प्रायः नव विवाहिता अपने मैके में ही मनाती है। इस पर्व में भोजन , वस्त्र ओ पूजा की सामग्री नव विवाहिता के ससुराल से ही आता है । इस अवसर पर मिथिला में भार ओ भरिया का प्रचलन था जिसका मनोहारी दृश्य देखते ही बनता था । आज के समय में वह दृश्य अब देखने को नहीं मिलता है ।

गौरी पूजा से होती है शुरुआत : विधि विधान के साथ माता गौरी की पूजा अर्चना से मधुश्रावणी पर्व की शुरुआत होती है । वैसे तो यह पर्व विधिवत कृष्ण पंचमी से शुरू होता है, परन्तु इसका विधान चतुर्थी से ही प्रारंभ हो जाता है । इस दिन से नव विवाहितायें अरबा-अरबानि खाती है।

शाम में सोलह श्रृंगार के साथ सजधज कर सखी-बहिनपा के संग विभिन्न फूलबाड़ी से फूल पात, जिसे ‘जूही-जाही’ कहा जाता है लोढ़ कर अपने-अपने डाली में सजा कर गीत गाते सहेलियों सङ्ग हास-परिहास करती हुई अपने घर आती है।

यह क्रम पूजा समाप्ति के एक दिन पूर्व तक चलता रहता है। पंचमी दिन से ससुराल से भेजा गया साड़ी-लहठी, गहना आदि पहनकर व्रती पूजा की तैयारी करती है। इस पूजा के लिए कोहबर के पास कलश पर अहिवातक वाती प्रज्वलित किया जाता है। ससुराल से पान के पत्ते पर बना हरदी की गौड़ और साथ में मैना के पत्ते पर धान का लावा रख उस पर दूध चढ़ाकर पूजन किया जाता है।

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गौरी की पूजा सिंदूर और लाल रंग के फूल से करने का विधान है। नागपंचमी के साथ इस लोक पर्व में माता विषहारा की पूजा अर्चना किये जाने का भी विधान है। मधुश्रावणी का अरिपन मुख्य रूप में मैना के दो पात पर लिखा जाता है। जहां, व्रती बैठकर पूजा करती है और इसके दोनों ओर जमीन पर अरिपन बनाया जाता है।

अरिपन के ऊपर मैना के पत्ते पर बायें तरफ सिंदूर और काजल से एक अंगुली का सहारा लेकर एक सौ एक सर्पिणी का चित्र बनाया जाता है, जो ‘एक सौ एकन्त बहन’ कहलाती है । इसमें ‘कुसुमावती’ नामक नागिन की पूजा की प्रधानता है। दायें तरफ पत्ते पर पिठार से एक सौ एक सर्प का चित्र भी एक ही अंगुली से बनाया जाता है। जिसे ‘एक सौ एकन्त भाई’ कहा जाता है। इसमें ‘वौरस’ नामक नाग की पूजा मुख्य रूप से होती है।

पूजन के समय टोल पड़ोस की महिलाएं गीत गाती हैं। सखियों में गीत गाने की होड़ सी लग जाती है ।” हे सीता प्यारी केहन तप केलहुं, गौरी पूजि पूजि वर मांगी लेलहुं। रामचंद्र सन स्वामी कोना मांगी लेलहुं, हे सीता प्यारी केहन तप केलहुं “….आदि गीत गाती और इस बीच व्रती नव विवाहिता पूजा अर्चना करती है।

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अनोखा क्यों है मधुश्रावणी : इस लोकपर्व के पूजन की खास विशेषता है कि महिला पुरोहिताईन व्रती को कथा सुनाती हैं। जिसमें मुख्य रूप से ‘विहुला मनसा’, ‘मंगला गौड़ी’, ‘विषहारा’, ‘पृथ्वी जन्म’, ‘सीता पतिव्रता’, ‘उमा पार्वती’, ‘गंगा-गौड़ी जन्म’, ‘कामदहन’, ‘लीली जन्म’, ‘बाल बसंत’ और ‘राजा श्रीकर का कथा का वाचन किया जाता है।

लोक कथाओं के माध्यम से नव विवाहिता को वैवाहिक जीवन संस्कार के साथ कई जीवनो पयोगी संदेश दिये जाते हैं। इस पर्व का पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते में मजबूती लाना भी एक उद्देश्य है। मिथिलानी अंजना शमा बताती हैं कि मधुश्रावणी में विषहारा और गौरी गीत गाने की विशेष परंपरा है। एक विशेषता ये भी है कि बासी फूल से ही माता विषहारा की पूजा की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लगातार तेरह दिनों तक अखंड दीप पूजा स्थल पर नव विवाहता की देखरेख में प्रज्वलित रहता है।

पूजा के अंतिम दिन टेमी दागने की परंपरा है। मिथिलांचल नारी संस्कृति का परिचायक है।अपने पति के दीर्घजीवन की मंगलकामना करने का सबसे विशिष्‍ट पर्व मधुश्रावणी मैथिल ललना की समर्पण एवं सहिष्‍णुता की कामना, निष्‍ठा एवं संस्कृति के प्रति प्रेम का प्रतीक है। बताते चलें कि मिथिलांचल का मधुश्रावणी जैसा लोकपर्व विश्व भर में अनूठा है।

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