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21 जून, 2024
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दियारा तेरी किस्मत में अभी भी पानी…किसका जमीर जगा और किसका सो गया, ये फैसला बस एक उफ़नती बाढ़ से हो गया Bhagalpur से यह Report

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दियारा तेरी किस्मत में अभी भी पानी…किसका जमीर जगा और किसका सो गया, ये फैसला बस एक उफ़नती बाढ़ से हो गया Bhagalpur से यह Report पढ़िए…

 

थोड़े से पैसे कमाए, उससे झोपड़ी बनाई

भागलपुर जिले (Bhagalpur News) में बाढ़ का पानी उतरने के बाद सड़क किनारे शरण लिए हुए लोग अपने गांव की ओर लौटने लगे हैं। अब उनके समक्ष जिंदगी को पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है।

गांव वापस होने पर वहां तबाही का मंजर देख पीड़ितों की दिल दहला उठा। कितने जतन से थोड़े से पैसे कमाए, उससे झोपड़ी बनाई। लेकिन बाढ़ अपने साथ सबकुछ बहा ले गई।

अनाज, बर्तन, बिस्तर, कपड़ा, खाट-चौकी, किसी की बकरी तो किसी की साइकिल। फसल की तो ऐसी बर्बादी हुई है कि उसे देखकर लगता है कि उस पर आग बरस गई हो और वह जल गई हो। तबाही का ऐसा मंजर देख पीड़ितों की रूह कांप रही है।

गांव पहुंचने तो दोबारा से आशियाना बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। वे लोग गांव की सड़क पर रह रहे हैं। महिलाएं मिट्टी के चूल्हे बनाने में जुटी हैं तो घर के पुरुष अनाज सुखाने से लेकर मवेशियों का चारा इकट्ठा करने में जहां-तहां भटक रहे हैं।

हालत यह है कि राहत शिविर से लौटने के बाद अब उनलोगों के सामने दो वक्त की रोटी पर भी आफत है। ऐसी स्थिति में वे लोग आपस में ही मांगकर आधी पेट खाकर रह रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा नाथनगर के राघोपुर पंचायत के माधोपुर गांव में दिखा।

चंपानाला पुल से गोसाईंदासपुर के रास्ते से होकर आगे बढ़ने पर सड़क की बर्बादी दिखने लगती है। कमोबेश यही स्थिति सबौर प्रखंड के बाबुपुर, मिल्खा, इंग्लिश फरका सहित अन्य कई गांव के बाढ़ पीड़ितों की है।

दियरा क्षेत्र की खराब स्थिति के कारण अभी भी भागलपुर हवाई अड्डा मैदान में बाढ़ पीड़ित काफी संख्या में रह रहे हैं। यहां चल रहा सामुदायिक रसोई बहुत पहले बंद हो चुका है। लेकिन यहां रहना इनकी मजबूरी है। छोटे छोटे प्लास्टिक के टेंट में ये लोग अपने मवेशियों के साथ रह रहे हैं। हालांकि बाढ़ का पानी दियारा क्षेत्र के गांव घरों से लगभग निकल चुका है।

दियारा के निचले हिस्सों में अभी भी पानी है। बाढ़ के पानी के दबाव से दियारा के कई लोगों का फुस की झोपड़ी टूट गई है, जबकि दियारा के ग्रामीणों ने बताया कि दियारा इलाके में मिट्टी एवं फुस की बनी झोपड़ी बाढ़ के पानी से भीगे रहने के कारण कभी भी धराशायी हो सकती है।

इससे पीडि़त परिवार की परेशानी काफी बढ़ गई है। वहीं दूसरी और बाढ़ कम होते ही बाढ़ प्रभावित इलाकों में सड़ांध बदबू से लोगों की परेशानी काफी बढ़ गई है। संक्रामक बीमारियां फैलने की आशंका बनी हुई है। जबकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में मच्छर एवं विषैले कीड़े मकोड़ों का प्रकोप काफी बढ़ गया है।

हलांकि जिन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी निकल रहा है, वहां ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव कराया जा रहा है। मेडिकल टीम द्वारा पूरे क्षेत्र में निगरानी की जा रही है। बाढ़ सहायता राशि भी बाढ़ पीडि़तों के खाते में भेजी जा रही हैं।

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