दरभंगा | 91 वर्षीय डॉ. रामजी ठाकुर, जिन्हें संस्कृत साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान के लिए राष्ट्रपति सम्मान से भी नवाजा गया था, का गुरुवार को उनके पैतृक गांव धर्मपुर, उजान पंचायत, मनीगाछी प्रखंड में निधन हो गया।
संक्षिप्त जीवन परिचय और शैक्षिक यात्रा
जन्म: मई 1935
प्रारंभिक शिक्षा: नरुआर गांव के पं. लक्ष्मीनाथ झा से
उच्च शिक्षा:
अवध बिहारी संस्कृत महाविद्यालय (आचार्य)
मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध संस्थान, दरभंगा (एमए)
मिथिला विश्वविद्यालय (पीएचडी)
शैक्षणिक पद:
बैगनी, बेनीपुर – रामप्रताप संस्कृत महाविद्यालय (साहित्य प्राध्यापक)
सरिसब पाही – महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह महाविद्यालय (संस्कृत प्राध्यापक)
मिथिला विश्वविद्यालय – उपाचार्य एवं विश्वविद्यालय प्राध्यापक
1995 में सेवा निवृत्त होकर पुनः शास्त्र चूड़ामणि प्राध्यापक
साहित्यिक योगदान
काव्य रचनाएँ: दो दर्जन से अधिक लघु काव्य, खंडकाव्य और महाकाव्य
प्रमुख खंडकाव्य: वाणेश्वरी चरित्र, वैदेही पदांकम्, राधा विरहम, प्रेम रहस्यम्, गोविंद चरितामृतम्
प्रमुख महाकाव्य: अमृत मंथनम्
काव्य ग्रंथ: आर्या विलास
संपादित और अनूदित ग्रंथ: 24 से अधिक
सम्मान:
2012: साहित्य अकादमी, नई दिल्ली – “लघु पद्य प्रबंधत्रयी”
2018: राष्ट्रपति द्वारा संस्कृत वाङ्मय में योगदान हेतु सम्मानित
परिवार और शोक
माता: गायत्री देवी, पिता: सत्यनारायण ठाकुर
2 भाई और 3 बहनों में सबसे बड़े
पीछे चार पुत्रियों सहित परिवार छोड़ गए
साहित्य जगत में शोक की लहर: डॉ. इन्द्रनाथ झा, डॉ. अमृतनाथ झा, पंडित कमलजी झा सहित अनेक विद्वानों ने पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की।