लदनियां। कभी मिथिलांचल को पहचान देने वाला पान एवं मखाना अब धीरे धीरे मजदूर के अभाव में घाटा के सौदा बन चुका है। अब मजदूर के अभाव में मखाना खेती छोड़ लोग मछली पालन पर जोड़ देने लगे हैं। लदनियां प्रखंड क्षेत्र में मजदूरों के अभाव में मखाना खेती घाटे का सौदा बन चुका है। जिसको लेकर लोग मखाना खेती से मूंह मोड़ चुके हैं। मछुआरे का झुकाव भी अब मछली पालन की ओर हो चुका है। लदनियां प्रखंड क्षेत्र में करीब पांच छह वर्ष पूर्व बड़े पैमाने में मखना खेती होती थी।
करीब 45-50 सरकारी जलकर में मखाना खेती होती थी। इसके अतिरिक्त दो दर्जन से अधिक निजी पोखरा में मखना खेती होती थी। करीब एक दशक से अचानक मखना खेती में भारी कमी आ गया है। इसका कारण मजदूरों के मूंह मांगा मजदूरी और व्यवसायी के हाथों औने पौने भाव में मखना बेचना। इस सम्बंध में लदनियां प्रखंड मछुआ समिति के सचिव तिरपित मुखिया से जब जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि लदनियां प्रखंड में पूर्व में 45-50 सरकारी जलकर में मखना खेती होती थी। इसके अतिरिक्त करीब दो दर्जन निजी पोखरा में मखना खेती होती थी। पोखरा से मखना निकालने के लिए मजदूरों को मुंह मांगा मजदूरी मांगना हैं। जबकि औने पौने भाव में व्यवसायी के हाथों मखना बेचने पड़ते है। इसलिए अब सरकारी जलकर में भी मछुआरे मखना खेती से मूंह मोड़ चुके हैं।
आये दिन लदनियां प्रखंड के सिधपकला पंचायत के हरही,जोरलाही में,लछमिनियां पंचायत में ठाढ़ी एक और गिधवास पंचायत के कबिलाशा सहित करीब छह सात सरकारी जलकर एवं उतना ही निजी पोखरा में मखना खेती होती है। मखना खेती के लिए किसी भी पोखरा में एक वर्ष ही मखना बोआई की जाती है। जो अक्टूबर माह में किया जाता है। मखना बोआई के ग्यारह महीने के बाद पोखरा से सितंबर माह से मखना निकाली जाती है। सोसाइटी के सचिव तिरपित मुखिया का कहना है कि लदनियां प्रखंड में कुल सरकारी जलकरों की संख्या 229 है। जो दो श्रेणी में विभाजित है। जुलाई श्रेणी में जलकरों की संख्या 126 और अक्टूबर श्रेणी में 103 जलकरों को रखा गया है। मछुआरे मखना खेती को घाटे का सौदा मानकर मखना खेती से मूंह मोड़कर करीब छह सात वर्षों से मछली पालन करने लगे हैं।