अप्रैल,30,2024
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Sama-Chakeva। सामा खेले चलली भौजी संग सहेली….Madhubani हो रहा शाम्ब की तपस्या और श्रीकृष्ण की मुक्ति भरा भाई-बहनों के संदेश से गूंजायमान

महिलाएं सामा-चकेवा व चुगला की मूर्ति मिट्टी से तैयार करती हैं। शाम में उन्हें डाला में सजाकर एक जगह एकत्रित होती हैं। पर्व से संबंधित लोकगीत गाती हुई सभी अपने भाइयों की सुखद जीवन की कामना करती हैं। यह क्रम कार्तिक पूर्णिमा तक हर दिन चलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महिलाएं वस्त्र, अन्न, सामान आदि देकर सामा की विदाई करती हैं। यह पर्व छठ पर्व के खरना वाले दिन से प्रारंभ होकर कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन विदाई विसर्जन के साथ संपन्न होता है। पढ़िए कुमार गौरव की यह रिपोर्ट...

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कुमार गौरव, मधुबनी, देशज टाइम्स। मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा की इन दिनों गांव व शहर की गांव गलियों में धूम मची है। यह पर्व पूरे मिथिलांचल में सांस्कृतिक और पारंपरिक तरीके से (Sama Chakeva created a stir in Madhubani) मनाई जाती है।

यह पर्व बहनों के द्वारा छठ के सुबह के अर्घ्य के बाद रात्रि से मिट्टी से बने सामा-चकेवा, सतभैया, वृंदावन एवं चुगला की मूर्तियां और दीप को एक टोकरी में डाल कर चौक-चौराहा और सड़कों पर खेलती हैं।

इस दौरान साम चाक साम चाक अय ह हे, जोतला खेत में बैसिह हे, वृंदावन में आगी लागल बुझाबई हे, चुगला करे चुगली बिलैया करे म्याऊं लड़कियों और महिलाओं के मुख से निकली इन गीतों और हंसी ठिठोली से गुंजायमान रहती है।

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इस पर्व के बारे में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री थी सामा। उनके भाई का नाम शाम्ब था। सामा के पति चक्रवाक थे। नौकरानी दिहुली थी। सामा नित्य दिन फुलवारी में घूमती थी। एक दिन दिहुली ने श्रीकृष्ण से झूठी चुगली कर दी कि सामा वृंदावन में टहलने के दौरान ऋषियों के साथ घूमती है।

जिस पर श्रीकृष्ण ने सामा को पक्षी बन वृंदावन में घूमने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण ऋषियों को भी पक्षी का रूप धारण करना पड़ा। जिस वक्त भगवान श्रीकृष्ण ने सामा को श्राप दिया। उस वक्त शाम्ब कहीं बाहर थे। जब वे लौटे तो बहन को खोजा तब उन्हें अपने पिता श्रीकृष्ण के श्राप का पता चला उसके बाद शाम्ब ने तपस्या शुरू कर दी तब भाई का बहन के प्रति अटूट प्रेम देख श्रीकृष्ण ने सामा को श्राप मुक्त कर दिया।

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उस दिन से सामा श्राप मुक्त हो गई। इसी मान्यता के साथ बहनें सामा चकेवा का खेल खेलती हैं और कार्तिक पूर्णिमा को खेत में भाई बहन को नए धान का चिवड़ा और गुड़ उपहार स्वरूप भेंट कर इस खेल का समापन करती हैं। इसको लेकर मिथिलांचल में गाजे -बाजे व ढोल मृदंग के साथ झिलमिल बल्बों के बीच शोभा यात्रा निकाली जाती है ।

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