अप्रैल,28,2024
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पकड़ौआ विवाह पर Patna High Court का आया बड़ा फैसला, कहा-बंदूक की नोंक पर मांग भरना शादी नहीं, बताया अमान्य

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पकड़ौआ विवाह को पटना हाईकोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया है। पटना हाई कोर्ट का इस मामले में बड़ा फैसला आया है। इसमें कोर्ट ने कहा है कि बंदूक की नोंक पर मांग भरना शादी नहीं हाे सकती है। कोर्ट ने इसे अमान्य (Patna High Court declared Pakdaua marriage invalid) बताया है।

पटना हाई कोर्ट ने मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी का हवाला दिया जिसमें उसने कहा था कि हिंदू परंपराओं के अनुसार कोई भी शादी तब तक वैध नहीं हो सकती जब तक कि ‘सप्तपदी’ नहीं की जाती।

किसी महिला की मांग में जबरन सिंदूर लगाना हिंदू कानून के तहत विवाह नहीं है। हिंदू विवाह तब तक वैध नहीं है, जब तक वह स्वैच्छिक न हो और ‘सप्तपदी’ (दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे लेने) की रस्म के साथ न हो। पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पीबी बजंथ्री और जस्टिस अरुण कुमार झा ने 10 साल पहले हुए एक पकड़ौआ विवाह के मामले की सुनवाई करते हुए ये बातें कहीं।

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जानकारी के अनुसार, बिहार के नवादा में दस साल पहले किडनैप कर बंदूक की नोक पर एक महिला के साथ उनकी जबरन शादी की वारदात हुई थीं। इस मामले में याचिकाकर्ता और नवादा जिले के रविकांत काे 30 जून 2013 को दुल्हन के परिवार ने उस समय अगवा कर लिया था जब वह लखीसराय के एक मंदिर में प्रार्थना करने गए थे।

इस बंदूक की नोक पर हुई शादी को लेकर पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। पटना हाई कोर्ट ने भारतीय सेना के एक जवान की शादी को रद कर दिया है। पढ़िए पूरी खबर

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याचिकाकर्ता रविकांत सेना में सिग्नलमैन थे। लखीसराय में बंदूक के बल पर 10 साल पहले उनकी जबरन शादी करा दी गई थी। उनसे जबरन दुल्हन की मांग में सिंदूर लगाने के लिए मजबूर किया गया था। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी दुल्हन यह साबित करने में विफल रही कि सप्तपदी का मौलिक अनुष्ठान कभी पूरा हुआ था।

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कथित विवाह कानून की नजर में ये अमान्य है। कोर्ट ने विवाह रद्द करते हुए कहा- हिंदू मैरेज एक्ट के मुताबिक, विवाह तब पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक पवित्र अग्नि का दूल्हा-दुल्हन फेरे नहीं लेते। इसके विपरीत, यदि सप्तपदी नहीं है तो शादी पूरी नहीं मानी जाएगी।

बिहार में ‘पकड़ुआ विवाह’ के एक मामले में पटना हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह तब तक वैध नहीं है, जब तक कि यह स्वैच्छिक न हो इसमें ‘सप्तपदी’ (अग्नि के सात फेरे) की रस्म निभाना जरूरी है। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के एक फैसले को भी खारिज कर दिया।

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