अप्रैल,29,2024
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शिक्षण शैली में दरभंगा बनने जा रहा दुनिया का सिरमौर, देश में सबसे पहले मिथिला विश्वविद्यालय में शुरू हो रही है लोककला की पढ़ाई, आगामी सत्र जून-जुलाई से विलुप्त हो रहे लोककला की शिल्प को मिलेगा स्नातकोत्तर से रिसर्च तक का आकार

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बेगूसराय। कभी नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की शिक्षण व्यवस्था को लेकर देश-दुनिया में चर्चित बिहार एक बार फिर शिक्षण शैली को लेकर पूरे देश का ध्यान खींचने जा रहा है। बिहार के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा में आगामी सत्र (जून-जुलाई) से विलुप्त हो रहे लोककला की पढ़ाई शुरू होने जा रही है।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा देश का पहला विश्वविद्यालय होगा, जहां लोककला की ना सिर्फ पढ़ाई होगी, बल्कि रिसर्च भी किए जाएंगे। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय फाइन आर्ट विभाग के डीन पुष्पम नारायण ने विशेष बातचीत के दौरान यह जानकारी दी।
बेगूसराय में आयोजित आशिर्वाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में शामिल होने आए डीन ने बताया कि विश्वविद्यालय  आगामी जून-जुलाई सत्र से लोक कला पर पढ़ाई शुरू कर रही है। जिसमें चित्रकला, सुजनी कला, सिकी कला, मिट्टी कला (मिन्मय कला), लाह कला, लकड़ी कला, बांस कला, मिथिला पेंटिंग, लोकनाटक, लोकगाथा, लोकवाद्य, लोकसंगीत एवं लोक साहित्य समेत तमाम लोक विधाओं-कलाओं में स्नातकोत्तर से रिसर्च तक होगा। पाठ्यक्रम तैयार हो चुका है, पूरे देश के लिए यह मिसाल बनेगा। इतने विषयों पर समेेेकित पढ़ाई पूरे देश में कहीं नहीं होती है।
उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत मिथिला विश्वविद्यालय में लोककला विभाग खोलने का निर्देश राजभवन से मिला था। इस आदेश के आलोक में कुलपति द्वारा विभाग नहीं केंद्र खोलने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए बिहार के सभी लोककला को एकत्रित किया गया है, सैद्धांतिक पत्र के साथ-साथ प्रायोगिक भी होगा। विश्वविद्यालय के नियम को लचीला बनाया जा रहा है, ताकि गांव-गांव घर-घर में बसी लोकशैली को पुनर्स्थापित किया जा सके। लोककला हमारी परंपरा और संस्कृति है, उसे जीवित करने के लिए यह किया जा रहा है।
नई शिक्षा नीति के अनुसार सेमेस्टर वाइज इसकी पढ़ाई होगी। विलुप्त हो रही लोककला की पढ़ाई अभी पूरे देश में कहीं नहीं हो रहा है। लोक संगीत कुछ होता है, नाटक होता है, लेकिन लोक नाटक नहीं होता है, लोक गाथा खत्म हो रहा है। देश में सबसे पहले ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय शुरू कर रहा है और किसी भी विश्वविद्यालयों में इसकी पढ़ाई नहीं होती है। उन्होंने कहा कि यहां की सांस्कृतिक धरती में ऐसी ऊर्जा है जो लोगों को अपने आप खींच लेता है।
लोककला एक ऐसी विधा है जो सबके जीवन में शामिल है और समाज के दूसरे तरह के माहौल को खत्म करता है। व्यक्तित्व निर्माण का यह सबसे सरल और बड़ा माध्यम है, लेकिन अब तक इसकी खानापूर्ति ही हो रही थी। लोककला हो या नाटक इसकी पढ़ाई सभी स्कूल से लेकर विश्वविद्यालयों तक होनी चाहिए।
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