बेनीपुर। शनिवार को प्रखंड क्षेत्र के मकरमपुर गांव अवस्थित महावीर जी मंदिर परिसर में सामूहिक ध्वजारोहण कार्यक्रम में भक्तों का सैलाब उमड़ (Makrampur village of Benipur) पड़ा।
जानकारी के अनुसार, प्रखंड क्षेत्र के मकरमपुर गांव अवस्थित महावीर मंदिर स्थल आज का दिन ऐतिहासिक दिन माना जाता है जहां बरसों से रामनवमी की तरह आज के दिन सामूहिक ध्वजारोहण की परंपरा चली आ रही है। एक और सम्पूर्ण भारत वर्ष में चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी के अवसर पर बजरंगबली का ध्वजारोहण की परंपरा है।
वहीं, मकरमपुर अवस्थित महावीर जी मंदिर प्रांगण में भादव कृष्ण पक्ष नवमी को एक साथ हजारों की संख्या में ध्वजारोहण कौतुहल का विषय बना हुआ है। अनुमंडल मुख्यालय से पाँच किलोमीटर उत्तर दिशा में बहेड़ा-झंझारपुर पथ में अवस्थित मकरमपुर गांव में स्थापित महावीर जी मंदिर प्रांगण में शनिवार को आयोजित सामूहिक ध्वजारोहण कार्यक्रम उत्सव महोत्सव की अनुपम छटा बिखेरती नजर आ रही है।
आज के दिन अनुमंडल क्षेत्र के हर सड़क की दिशा मकरमपुर की तरफ ही नजर आने लगती है ।शासन प्रशासन से लेकर राजनेता तक आज के दिन यहां पहुंचकर अपने के साथ साथ अरिजन परिजन तक की सुख-समृद्धि का कामना करते हैं। इस स्थान की धार्मिक महता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पांच दशक पूर्व भारत सरकार के पूर्व रेल मंत्री स्व ललित नारायण मिश्र, ग्रामीण विकास मंत्री स्व पंडित हरिनाथ मिश्र मन्नते पुरा होने के बाद ध्वजा अर्पण किया था । और निवर्तमान सांसद कीर्ति झा आजाद प्रतिवर्ष शीष झुकाने पहुंचते हैं।
वहीं, क्षेत्रिए लोगों के अलावे दरभंगा, मधुबनी, सीतामढी, सहरसा, समस्तीपुर के अलावे परोसी देश नेपाल के श्रद्धालु भी पहुँचकर ध्वजा चढाते हैं । वैसे तो इस स्थान की मान्यता में बहुत किंवदन्ति है । कुछ लोग पूर्व समय में महामारी के रोकथाम में पुजारी को स्वप्न के बाद ध्वजारोहण की परम्परा शुरु होने और कालान्तर में आस्था, विश्वास में वृद्धि को कारण बताते है । ग्रामीण सीताराम चौधरी, विजय कुमार चौधरी, संतोष चौधरी, बब्लू चौधरी, नित्यानंद चौधरी,राम नरेश चौधरी, आदि बताते हैं कि हम लोग जलेवार गरौल के मूल निवासी जो वर्तमान में अलीनगर प्रखंड में अवस्थित है।
मुगलकालीन शासन के समय इनके छठे पीढी कन्हैया चौधरी वहां के प्रताड़ना से तंग आकर घर बार छोड़ इस स्थान पर आज ही के दिन शरण लिया और वास लेने से पूर्व महावीर जी का स्थापना किया। आगे चलकर हरियठ मौजा को लेकर राज दरभंगा से मोकदमा चला जिसमें मन्नते की गयी थी जीत के बाद दो ध्वजा अर्पण करेंगे। और यह परम्परा ग्रामीणों के साथ साथ बाहरी लोगों के लिए भी आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन गया।
श्री चौधरी बताते हैं कि पिछले वर्ष सात हजार से अधिक ध्वजा स्थापित की गयी थी। और प्रतिवर्ष इसमें इजाफा हो रही है, वर्तमान समय में इस परिसर में पाँच बिभिन्न देवी देवताओं के मंदिर सहित एक धर्मशाला श्रद्धालु द्वारा निर्माण कराये गये हैं। यहां के पूजा का प्रावधान है कि एक ध्वजा चढाने वाले तीन ब्राह्मण और दो कुंवारी कान्याओं को भोजन कराते है और प्रसाद में मूल रूप से चुड़ा, दही, चीनी, केला और मिठाई का ही प्रधानता होती हैं।