दरभंगा: जिलाधिकारी राजीव रौशन ने मिथिला संस्कृत शोध संस्थान की विकासात्मक परियोजनाओं के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने प्राचीन बहुमूल्य दुर्लभ पांडुलिपियों की सुरक्षा के लिए माकूल उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया।
विकासात्मक योजनाएँ
जिलाधिकारी ने संस्थान के जर्जर भवनों के पुनरुद्धार और नए भवनों के निर्माण के लिए प्रस्ताव भेजने की बात की। उन्होंने पांडुलिपियों के स्कैनिंग, डिजिटाइजेशन, संपादन और प्रकाशन के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर गंभीरता से चर्चा की। सभी संबंधित प्रस्तावों को विभाग को अविलंब भेजने का आश्वासन दिया गया।
योग संस्थान की स्थापना और उद्यान निर्माण
बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि परिसर में योग संस्थान, मुंगेर की एक शाखा स्थापित की जाएगी, साथ ही उद्यान निर्माण की योजना भी बनाई जाएगी।
आवश्यक सुविधाओं का विकास
कार्यक्रम के संयोजक जिला शिक्षा पदाधिकारी समर बहादुर सिंह ने शोध संस्थान परिसर के लिए आधुनिक सुविधाओं से युक्त बड़े सेमिनार हॉल, मुख्य प्रशासनिक भवन, चहारदीवारी, और आंतरिक पथ के निर्माण की प्राक्कलन तैयार करने की बात की।
पांडुलिपियों की सुरक्षा के उपाय
शोध संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने पांडुलिपियों और अन्य परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए जिलाधिकारी से सहायता मांगी। सदस्य शास्त्रचूड़ामणि विद्वान डॉ. मित्रनाथ झा ने संस्थान के भारतीय ज्ञान परंपरा में योगदान की जानकारी दी।
डिजिटाइजेशन की पहल
सदस्य उज्ज्वल कुमार ने पांडुलिपियों के संरक्षण और डिजिटाइजेशन के लिए राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा द्वारा की गई पहल की जानकारी दी, जिसमें हाल ही में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली से आए अधिकारियों का भी जिक्र किया गया।
विशेष विद्वानों की आवश्यकता
पूर्व पांडुलिपि विभागाध्यक्ष प्रकाशचंद्र झा ने पांडुलिपियों के विषयवार वर्गीकरण के लिए विशिष्ट विद्वानों के सहयोग की आवश्यकता बताई।
उपहार स्वरूप पुस्तकें
इस अवसर पर डॉ. मित्रनाथ झा ने संस्थान द्वारा प्रकाशित तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें—जेम्स ऑफ मिथिला, मिथिला एंड मगध, और पॉलिटिकल थिंकर्स इन मिथिला—उपहार स्वरूप प्रदान की।