अप्रैल,29,2024
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सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही…इच्छा शक्ति हो तो…Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट

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सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट बिहार रोजगार का भंडार अपने सीने में दफन किए हुए है। अगर, उस सीने को थोड़ा टटोला जाए, मंशा साफ हो तो बिहार तरक्की की राह पर खुद-ब-खुद दौड़ पड़ेगा। बस, नीयत साफ हो, नियति भी स्पष्ट हो। किसान मालमाल थे और फिर हो जाएंगें। रोजगार की कमी नहीं थी, फिर कोई कमी नहीं रहेगी।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टसरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टतस्वीरें जो हम दिखा रहे हैं, उन तस्वीरों के बारे में कुछ भी कहें उससे अधिक आप खुद समझते हैं। सरकार भी समझती है। बस, इन तस्वीरों पर पड़े धुंध को साफ करने की जरूरत है। संजय कुमार राय की यह रिपोर्ट

सरकार चाहे तो भर सकता है बिहार में कुबेर के खजने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट
सरकार चाहे तो भर सकता है बिहार में कुबेर के खजने से रोजगार, शर्त्त यही…इच्छा शक्ति हो तो…Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट

जर्जर कायों में फिर से जान फूंकने की जरूरत है ताकि हम फिर से देश में अगुवा बन सकें। बिहार तरक्की की राह मेंसरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टसरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट बेलगाम दौड़ सके।  हम गर्व से कहते थे “हम मिथिलावासी हैं”। लेकिन, इस हरे भरे रोजगार वाले इलाकों में सबकी नजर लगी और वह नजर भी किसी और का नहीं अपनो का ही था।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टराजनीति में वर्चस्व था। पढ़े-लिखे लोग भी ज्यादा थे। बड़े बड़े पदों पर भी लोग आसीन थे। संपन्नता से भरपूर मिथिला का यह इलाका विपन्नता की ओर चला गया। आज के दिनों में सबसे पिछड़ा इलाका मिथिलांचल बनके रह गया। इस इलाके के पिछड़ापन का अगर कोई जिम्मेदार हैं तो बस राजनीति हैं।
सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टआप गिनती करेंगे तो आपको भी आश्चर्य होगा। इन मिलों के बंद होने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ पूर्व के राज्य सरकार पर जाता है। वर्तमान सरकार की तो रुचि ही नहीं है। पूर्व की सरकारों ने इसे चलाने के बजाए राजनीति रोटी सेकी और मुद्दा बनाया। राजनीति रोटी सेंकती रही और अपना जेब भर्ती रही।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टमिथिलांचल के इन मिलों की बात करें तो लोहट चीनी मिल, सहरसा पेपर मिल,अशोक पेपर मिल,कटिहार जुट उद्योग, भागलपुर का सिल्क उद्योग, पूर्णिया वनमंखी शुगर मिल, रेयाम चीनी मिल, सकरी चीनी मिल, रामेश्वर जुट मिल, सीतामढ़ी चीनी मिल, चंपारण चीनी मिल आदि थे।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टयही नहीं बरौनी का रिफाईनरी और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर भी था। कई ऐसे मिल थे जो चालू रहता तो आज के दिनों में बिहार का यह इलाका स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टसरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टलेकिन, यहां के राजनीतिज्ञों की राजनीति ने सबको ठप कर दिया। राजनीति के क्षत्रछाया में पल बढ़ रहें कामगार मजदूरों ने इसे राजनीति का अखाड़ा बना दिया। इस कारण सभी मिले बंद हुईं। कुछ मिलों का जीर्णोद्धार भी करने की कोशिश की गई लकिन कई नेताओं की मंशा बस अवैध उगाही तक सीमित थी।
सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टसरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टइस कारण मिल चलाने के बदले मिल का स्क्रेप भी बेचकर चलते बने। अगर सरकार की मंशा दुरुस्त हों तो आज भी इन मिलों को चलाया जा सकता हैं। किसानों की हालत में सुधार लाया जा सकता हैं। पर ऐसा कुछ भी वर्तमान परिस्थितियों में नहीं हों सकता और इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इन मिलों पर सरकार ने अधिपत्व तो जमाया लेकिन जमीन को सरकार ने अधिग्रहण नहीं किया था।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट राज दरभंगा के मैनेजर पवन दत्ता का कहना है कि सरकार और राज दरभंगा के बीच एक एकरारनामा बना था। इसमें वर्णन हैं कि महज एक रुपया में सरकार को दरभंगा राज की ओर से संचालित मिल को दे दिया गया था। सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्टइसमें एक बात अहम है जो पत्रक में लिखा भी है कि जिस दिन सरकार मिलों को चलाने में अक्षम हुई तो ऐसे मिलों को सरकार दरभंगा राज को पुनः सौंप देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मिले तो बंद हों गईं, लकिन सरकार ने दरभंगा राज की और से संचालित मिलों को वापस नहीं किया।सरकार चाहे तो भर सकती है बिहार में कुबेर के खजाने से रोजगार, शर्त्त यही...इच्छा शक्ति हो तो...Sanjay Kumar Rai की रिपोर्ट

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