दिल्ली हाईकोर्ट ने बिना आईडी के 2,000 रुपए के नोट बदलने की अनुमति देने वाली आरबीआई के नोटिफिकेशन के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिका को खारिज कर दिया है।
जय बाबा केदार..!
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याचिका में आरबीआई के फैसले को चुनौती दी गई थी। वहीं, निर्णय को मनमाना बताया गया था। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया गया था।
इस याचिका में रिजर्व बैंक और स्टेट बैंक के बिना पहचान पत्र के नोट बदलने के आदेश को चुनौती दी गई थी, उन्होंने बिना किसी पहचान प्रमाण पत्र के दो हजार के नोट बदलने की अनुमति न देने की मांग की थी।
यह याचिका भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने 22 मई को दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज इस मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया है।
जानकारी के अनुसार,दिल्ली हाईकोर्ट ने बिना आईडी के 2,000 रुपये के नोट बदलने की अनुमति देने वाली आरबीआई के नोटिफिकेशन के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिका को खारिज कर दिया है।
अधिवक्ता ने तर्क दिया कि इस संबंध में आरबीआई और एसबीआई की अधिसूचनाएं मनमानी, तर्कहीन होने के साथ ही संविधान के अच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।
बड़े नोट में नकद लेनदेन भ्रष्टाचार का मुख्य कारण होता है और इसका उपयोग आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, कट्टरपंथ, जुआ, तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग, अपहरण, जबरन वसूली, रिश्वत और दहेज आदि जैसी अवैध गतिविधियों के लिए किया जाता है।
न्यायमूर्ति सतीश चंदर शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को इस मामले पर फैसला सुनाया और याचिका खारिज करने का फैसला किया। इससे पहले आरबीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने याचिका का विरोध किया और कहा कि यह एक वैधानिक प्रक्रिया है न कि नोटबंदी।
याचिका भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने आरबीआई और एसबीआई से यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश मांगा था कि रु2000 के बैंकनोट संबंधित बैंक खातों में ही जमा किए जाते हैं ताकि कोई भी दूसरों के बैंक खातों में पैसा जमा न कर सके और काले धन और आय से अधिक संपत्ति रखने वालों की आसानी से पहचान हो सके।
याचिका में आरबीआई के फैसले को चुनौती दी गई थी और निर्णय को मनमाना बताया गया था। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया गया था।
न्यायमूर्ति सतीश चंदर शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और वरिष्ठ अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने आरबीआई की ओर से दलील पेश की।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के नोटीफिकेशन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। रिजर्व बैंक और एसबीआई ने 2000 का नोट वापस लेने और बिना किसी मांग पर्ची और पहचान प्रमाण के 2,000 रुपये के नोटों को बदलने की अनुमति दी थी।
याचिका में आरबीआई और एसबीआई के निर्णय को मनमाना, तर्कहीन बताया गया था। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाला बताया गया था। आरबीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने याचिका का विरोध किया और कहा कि यह एक वैधानिक प्रक्रिया है न कि नोटबंदी।
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति सतीश चंदर शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को इस मामले पर फैसला सुनाया और याचिका खारिज करने का फैसला किया।