अप्रैल,29,2024
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शिक्षा के नाम पर सीधे क्यों नहीं कहते सरकार, मैं हूं लाचार, मेरा सिस्टम लाचार, मेरी व्यवस्था लाचार… निगल लो बच्चों को और हंसों जी भर…

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दरभंगा/मधुबनी। सीधे क्यों नहीं कहते सरकार, मैं हूं लाचार, मेरा सिस्टम लाचार, मेरी व्यवस्था लाचार। कोरोना तो अब बहाना माना जा रहा है, दरअसल ना तो सरकार, न प्रशासन और ना ही स्कूलों के पास पर्याप्त संसाधन है जो ऐसी स्थितियों का, प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सके। और हद यह, कबूलने के लिए भी तैयार नहीं कि हां, मैं कमजोर हूं, मेरी व्यवस्था बिल्कुल छिन्न-भिन्न है। ना स्कूलों में आधुनिक तरीके से पढ़ाने वाले शिक्षक हैं। न शिक्षकों को तलाशने की कोई जुगत।

 

 

 

 

सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को एक अदद सही से शिक्षक होने का मान तक नहीं है। उन्हें शिक्षक होने का मतलब तक पता नहीं हैं। मौज कर रहे हैं। ऐसे में क्या खाक बच्चे पढ़ेंगे। निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाओ, खूब पैसा खर्च करो और ऊपर से बच्चे को डायमंड की तरह चमकाने के लिए उसी स्कूल के मास्टर साहेब के घर-ट्यूशन सेंटर में पांव रगड़ो। यही तो आज की शिक्षा व्यवस्था है जिसे प्रशासनिक सह मिल रहा है। सरकार का भरपूर संरक्षण मिल रहा है। जब प्रदेश की सरकार उसके शिक्षा मंत्री ही खुद यह कहते मिलें, निजी स्कूलों पर हमारा कोई दखल नहीं तो फिर मनमानी, मनमर्जी की अति तो तय है तभी तो दसर्वी की परीक्षा रद कर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। विपक्ष के सामने नायक बनकर खड़ी है वहीं बारहवीं की परीक्षा पर विचार चल रहा है। बड़ी कृपा है सरकार की। बड़ी मेहरबानी है साहेब जी की…सोच रहे हैं, बैठकें हो रहीं हैं, अधिकारियों की एसी कारें पहुंच रही हैं और इधर, धक्के खाते, उस सरकारी व्यवस्था के कागजों पर रेंगती व्यवस्था को देखते छात्र प्रैक्ट्रिल की परीक्षा देने स्कूल पहुंच रहे हैं।

 

 

 

 

सरकार का दावा, प्रशासन की पीठ थपथपाई जा रही, वाह! यात्री वाहनों में पचास फीसद ही यात्री बैठेंगे, जो इसका उल्लंधन करेगा डंड भोगेगा मगर साहेब जी….ये डंड देगा कौन…कितने अधिकारी बसों, ऑटो की जांच करते मिलते हैं। हद तो यह, जिला प्रशासन की धज्जियां उड़ रहीं हैं सड़क पर। एक अदद मास्क तो पहनकर लोग निकल नहीं रहे। और बात सोशल डिस्टेंशिंग की करते हैं। अब बताइए तो सात बजे शाम के बाद दुकानें बंद कर देने से क्या दरभंगा-मधुबनी समेत पूरे बिहार में कोरोना संक्रमित कम हो गए क्या। स्कूलों को 11 तक बंद करने की घोषणा फिर अठारह तक जारी रखने का फरमान क्यों…? क्यों बार-बार स्कूलों को ही बंद कर रहे हो, अरे बच्चों से इतना ही हमदर्दी है, उनकी जान की इतनी ही परवाह है तो फिर दोहरी नीति क्यों? कूबत है क्या…कहने को कहते हो, ऑन लाइन पढ़ेंगे बच्चे जरा सरकारी तो छोड़ो निजी स्कूल के शिक्षकों से ऑनलाइन का मतलब पूछ लो…मोबाइल थामते ही हाथ कंपकंपाने लगेंगे। सिस्टम सुधारोगे नहीं, इतने साल देश की आजादी के हो गए, एक अदद शिक्षा व्यवस्था दुरूस्त नहीं कर सके। अब शिक्षकों को आत्मनिर्भर बनाने की बात करते हो।

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अब देखो ना सरकार…दसवीं के बच्चों के लिए परीक्षा कैंसिल कर विपक्ष की बोलती तो बंद कर दी मगर, उन नौनिहालों का क्या जो निजी बसों पर ऑटो पर लदकर स्कूल पहुंच रहे। प्रैक्ट्रिल दे रहे। अगर उनमें से किसी एक को भी कोरोना हो गया, उनके परिजनों की स्थिति का तनिक भी एहसास है आपको, क्यों रहेगा…सरकारी अस्पताल में सिस्टम बदतर है। निजी अस्पतालों में बेड फुल है। कोरोना होने पर होम आइसोलेट कर प्रशासन अपना इतिश्री मान लेता है। झेलो…तुम अभिभावक हो….

 

 

 

 

बुधवार की दोपहर सीबीएसई परीक्षा को लेकर गाइडलाइन जारी होते ही छात्र, अभिभावक और शिक्षक सभी हतप्रभ रह गए। बच्चों का मनोबल एका-एक गिरा सा लगा। बच्चों की लग्न और उनकी पढ़ाई में दिनरात एक करने वाले शिक्षक सभी को अपना उद्देश्य ही कुछ समय के लिए खत्म होने से लगा। सभी ने कहा कुछ करने के लिए कुछ सार्थक उद्देश्य होता है। यही स्प्रीट उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। सरकार को कुछ प्रोग्राम निर्धारित करने के बाद 10 वीं की परीक्षा रद्द करनी चाहिए। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत सभी अपने स्कूलों में प्री बोर्ड की तरह ही परीक्षा आयोजित कर लेनी चाहिए। हालांकि कोविड के बढ़ते संक्रमण से हर काई सहमा है। ऐसे में जान है तो जहान है के लिए निर्णय को आत्मसात कर नए जोश और उमंग से नयी कक्षा में जुट जाने का संदेश शिक्षक और अभिभावकों ने अपने छात्रों को दिनभर सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से देते रहे। सभी ने जीवन में कक्षा नहीं अपने मूल लक्ष्य को निर्धारित करने के कंसेप्ट को आत्मसात करने पर बल दिया।

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मधुबनी के डॉ. आरएस पांडेय निदेशक हैं, कहते हैं, बच्चों के लिए दसवीं की परीक्षा काफी महत्वपूर्ण होती है। यह निर्णय आपदा को देखते हुए लिया गया है। इसलिए हमें नए जोश और उमंग से नई कक्षा की तैयारी में जुट जाना होगा। ताकि हम जीवन की पढ़ाई में आगे निकल सके। प्राचार्य डॉ. किरण वर्मा बारहवीं की परीक्षा के लिए वक्त लिया गया है। वहीं दसवीं की परीक्षा को स्थगित कर दिया गया है। स्वाभाविक है बच्चों के मस्तिष्क पर इसका असर हुआ है। पर हमें उनके हौसला को बनाए रखना है, ताकि वे और अधिक परिश्रम कर आगे बढ़े। वे जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने में सफल हो। ताकि इसतरह की बातों का असर नहीं हो। शुभचंद्र झा कहते हैं, बच्चे साल भर दसवीं की परीक्षा की तैयारी करते हैं। उनके लिए सामुदायिक परीक्षा का यह पहला अनुभव होता है। इसलिए परीक्षा रद होने से छात्र हतोत्साहित हुए हैं। पर यह आवश्यक है कि इस क्षण हम अपने बच्चों के मन से एकाएक कमतर हुए स्प्रीट को सशक्त करें। कक्षा के संसार से निकल कर कैरियर के कंसेप्ट को आत्मसात करना होगा। शिक्षाविद जितेन्द्र कुमार, दसवीं और बारहवीं की परीक्षा छात्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। खासकर दसवीं परीक्षा को हमेशा जीवन का नींव माना जाता रहा है।

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ऐसे में बच्चों के गिरे मनोबल को बनाया रखना अभिभावक और शिक्षकों की बड़ी जिम्मेदारी है। इस संकट के क्षण में निर्णय को जीवन और मनोबल दोनों से तालमेल बिठाना होगा। छात्रा जाह्ववी दसवीं की तैयारी छात्र दिनरात एक कर करते हैं। ऐसे में परीक्षा रद्द होने की खबर से लगा कि उद्देश्य ही खत्म हो गया है। पर शिक्षकों ने सोशल मीडिया और फोन कर उत्साह को बढ़ाया और आगे के लक्ष्य को हासिल करने पर फोकस करने का संदेश दिया। इसके बाद जीवन में हर हाल में अपने लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया। छात्रा सिमरन कहती हैं, जब उसे पिता से परीक्षा कैंसल होने की जानकारी मिली तो वे सन्न हो गयी। सभी जगहों पर फोन करने लगी। वे मेडिकल में जाना चाहती है। तैयारी अच्छी की थी। पर लगा सब खत्म हो गया है। पर कोविड की रफ्तार को देखा और शिक्षकों के संदेश को पढ़ा तो एवं अधिक हौसला से जीवन में बेहतर करने का फैसला लिया।

 

 

 

 

मगर, अभिभावकों में इस बात का बेहद गुस्सा है, नाराजगी है, सरकार एक तरह से नहीं सोचती, अगर दसवीं की परीक्षा स्थगित हो सकती है मगर बारहवीं की नहीं। प्रैक्ट्रिल लिए जा रहे हैं। बच्चे हैं, हताश हैं, निराश हैं, अभिभावक हैं बेचैन हैं, मगर सरकार है हंस रही है…प्रशासन है खामोश है और स्कूल तमाशबीन…क्योंकि स्कूल इन दोनो सरकार और प्रशासन के सामने बेहद कमजोर स्थिति में है, उसकी कमाई भी है और उसका भविष्य भी है जो दोनों दांव पर है क्योंकि….अब निजी स्कूलों से भी अभिभावकों का भरोसा टूट रहा है, यह जोड़ अब फैविकॉल से भी जुड़ेगा इसमें संदेह…और अगर जुड़ भी गया तो गांठ तो साफ दिखाई ही देगी…।

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