बिहार के पूर्व डीजीपी डीपी ओझा का निधन: पुलिस सेवा में कड़ा रुख और सख्त फैसलों के लिए याद किए जाएंगे
बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) डीपी ओझा का निधन हो गया। उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में एक लंबा और प्रभावशाली कार्यकाल बिताया। कुछ समय से बीमार चल रहे ओझा, वीआरएस लेने के बाद से पटना में रह रहे थे। वे अपने सख्त फैसलों और निडर व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे।
डीपी ओझा: बाहुबली और राजनीति के खिलाफ सख्त कार्रवाई
डीपी ओझा का नाम तब सुर्खियों में आया जब उन्होंने राजद सरकार के कार्यकाल में सिवान के बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ कठोर कार्रवाई की। उन्होंने शहाबुद्दीन के ठिकानों पर छापेमारी कर कानून का सख्त संदेश दिया।
- यह वह दौर था जब लालू प्रसाद यादव का बिहार की राजनीति पर दबदबा था।
- ओझा की सख्ती के चलते शहाबुद्दीन के अपराधिक साम्राज्य का पतन शुरू हुआ।
- लालू प्रसाद यादव ने सार्वजनिक मंचों पर डीपी ओझा को निशाने पर लिया। लालू ने तंज कसते हुए कहा था, “हमने डीपी ओझा का बोझा बांध दिया है।”
डीजीपी के रूप में कार्यकाल और विवाद
- डीपी ओझा 01 फरवरी, 2003 को बिहार के डीजीपी बने।
- डीजीपी बनने के तुरंत बाद उन्होंने राज्य के सबसे बड़े बाहुबली और तत्कालीन राजनीति के कई दिग्गजों के खिलाफ मोर्चा खोला।
- उनकी निडरता के चलते उन्हें जल्द ही डीजीपी पद से हटा दिया गया।
पुलिस सेवा के बाद राजनीति में प्रवेश
सेवानिवृत्ति के बाद डीपी ओझा ने 2004 में राजनीति में कदम रखा।
- उन्होंने भूमिहार बहुल बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा।
- लेकिन चुनाव में उन्हें केवल 6000 वोट मिले, और उनकी जमानत जब्त हो गई।
- उस चुनाव में जदयू के ललन सिंह विजयी रहे।
डीपी ओझा: एक निडर अफसर की विरासत
डीपी ओझा का नाम हमेशा एक ऐसे अधिकारी के रूप में लिया जाएगा जिन्होंने अपराध और राजनीति के गठजोड़ को तोड़ने का साहस दिखाया।
- उनका सख्त प्रशासनिक रवैया और कानून-व्यवस्था के लिए दृढ़ता, बिहार पुलिस के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है।
- वैचारिक रूप से वाम दलों के करीब माने जाने वाले ओझा ने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
बिहार के लिए अपूरणीय क्षति
डीपी ओझा का निधन बिहार के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने पुलिस सेवा और न्याय की दिशा में जो योगदान दिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा रहेगा।