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7 नवम्बर, 2024
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ठांओं कयलहुं अरिपन देलहुं…मिथिला की सुगंध से महका मधुश्रावणी पर्व, जानिए क्यों होता है मधुश्रावणी में बासी फूलों से पूजन?

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सतीश चंद्र झा, बेनीपुर, दरभंगा। ठांओं कयलहुं अरिपन देलहुं…लीखल नाग-नगिनिया फूल लोढ़लहुं पाती अनलहुं…पूजूपू जूनाग-नगिनिया…मिथिलांचल की नवविवाहित ललनाओं का प्रसिद्ध लोक पर्व मधुश्रावणी रविवार को टेमी दागने की परंपरा के साथ हर्षोल्लास में संपन्न हो गया। यह पर्व नाग पंचमी से प्रारंभ होकर 13 दिनों तक चलता है और 14वें दिन टेमी दागने की रस्म के साथ समापन होता है।

फूल-पत्तियों से सजी डलिया और गीतों की गूंज

इस दौरान नवविवाहित महिलाएं बाग-बगानों से फूल-पत्तियां चुन कर डलिया सजाती हैं। शाम ढलते ही मोहल्लों की गलियों से सजी-धजी ललनाएं रंग-बिरंगे परिधानों में एक सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठा होती हैं और लोकगीतों से माहौल को सुरमय बना देती हैं। हंसी-ठिठोली और रीति-रिवाजों की यह झलक पूरे इलाके में उल्लास का वातावरण बना देती है।

नाग देवता की पूजा से मिलता है जीवनभर का सौभाग्य

लोक मान्यता के अनुसार, इस पूजा में भगवान शंकर की पुत्री नाग देवता के विभिन्न स्वरूपों की आराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस विधि से पूजा करने पर पति और परिवार नाग देवता के प्रकोप से जीवनभर सुरक्षित रहते हैं।

  • खास बात यह है कि इस पूजा में पुरोहित गांव की महिलाएं ही होती हैं।

  • बासी फूलों से नाग देवता की पूजा करना हिंदू धर्म की विशेष परंपरा मानी जाती है।

टेमी दागने की रस्म और सौभाग्य की मान्यता

पर्व के अंतिम दिन टेमी दागने की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें फफोलों का आकार जितना बड़ा, सौभाग्य भी उतना ही बड़ा माना जाता है। यह एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संकेत है, जो नवविवाहित के दाम्पत्य जीवन की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है।

सात्विकता और ससुराल से आए संदेशों की मिठास

पूरे पूजा अवधि में नवविवाहित महिलाएं नमक रहित भोजन ग्रहण करती हैं और मधुश्रावणी के दिन ससुराल से आए “संदेश” (प्रसाद) को आस-पड़ोस और रिश्तेदारों के बीच बांटती हैं। इससे सामाजिक जुड़ाव और रिश्तों में मिठास बढ़ती है।

पूरे गांव में छाया उत्सव का माहौल

इस मौके पर नवविवाहित कन्याओं के घरों में सुबह से ही उत्सव का माहौल था। परिजन, आस-पड़ोस की महिलाएं और ग्रामीण जन बड़ी संख्या में इस पारंपरिक आयोजन के साक्षी बने।

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